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पञ्चमी भागः
रसप्रकरणम् ]
१०९
शशैणादिरसेनैव रसेन विविधेन च ।
द्वन्द्वमितानि हिङ्गुसहितान्येला लवङ्गानले लाई मन्दानं दीपयत्याशु बाडवाग्निसमप्रभम् ॥ पारदभस्मकोमृतमथो ताम्रं च कर्षे पृथक् ॥ अर्शास ग्रहणीरोगं कुष्ठमेहभगन्दरम् । चूर्ण माषयुगं सुशीतलजलेनासेवितं शूलनुत् लहानमश्मरीं श्वासकासं मेहोदर क्रिमीन् ॥ गुल्मलीहम जीर्णमग्निमृदुतामत्यम्लपित्तं जयेत् । हृद्रोगं पाण्डुरोगञ्च विबन्धानुदरे स्थितान् । शंख भस्म, पीली कौड़ीकी भस्म, सोंठ, तान् सर्वान्नाशयत्याशु भास्करस्तिमिरं यथा ॥ मिर्च, पीपल, जवाखार, सज्जीखार, सुहागा, हर्र, बहेड़ा, आमला, लज्जालुकी जड़, पांचों नमक, शुद्ध गंधक, जीरा, अजवायन और हींग २॥-२॥ तोले तथा इलायची, लौंग, चीता, लोहभस्म, शुद्ध बछनाग और ताम्र भस्म ११ - १ | तोला लेकर सबको एकत्र खरल करके चूर्ण बनायें
पापलामूल, चीतामूल, दन्तीमूल, शुद्धपारद, शुद्धगन्धक, पीपल, जवाखार, सज्जीखार, सुहागा, पांचों नमक, कालीमिर्च, सोंठ, शुद्ध बछनाग, अजमोद, गिलोय, हींग और इमलीका क्षार १ - १ भाग तथा शंख भस्म २ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सबको नीबूके रस में घोटकर २ - २ रत्तीकी गोलियां बना लें ।
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: अनुपान - खड्डे अनारका रस, जम्बीरीका रस, तक्र, मस्तु, मद्य, सीधु, काञ्जी, उष्ण जल अथवा शशा और हरिन आदिका मांस रस । ( जब बिना हिंसा के ही काम चल सकता है तो मांस रस लेना व्यर्थ है | )
इनके सेवनसे मन्दाग्नि शीघ्र ही बडवानलके समान दीप्त हो जाती है तथा अर्श, ग्रहणी, कुष्ठ, प्रमेह, भगन्दर, प्लीहा, अश्मरि, श्वास, कास, उदरकृमि, हृद्रोग, पाण्डुरोग और मलावरोधादिका नाश
है।
(७५५७) शङ्खादिचूर्णम् (१) (बृ. नि. र. । शूला. ) शङ्खः पीतवराटकत्रिकटुकं क्षारत्रयं त्रैफलं सङ्कोची लवणानि गन्धकमथोजाजी यवानी
पृथक् ।
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मात्रा - १ माशा ।
अनुपान - शीतल जल ।
इसके सेवन से शूल, गुल्म, प्लीहा, अजीर्ण, अग्निमांद्य और अम्लपित्तका नाश होता है ।
(७५५८) शङ्खादिचूर्णम् (२)
( वृ. नि. र. । शूला.; वै. र. । शूला. ) दग्धरा करअं च हिङ्गुत्र्यूषण सैन्धवम् । एतच्चूर्णीकृतं सर्वं पिबेच्चोष्णेन वारिणा ।। सर्वशुलहरं चूर्ण विख्यातं रविसागरे ।
शंख भस्म, करञ्जकी गिरी, भुनी हींग, सोंठ, मिर्च, पीपल और सेंधा नमक समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
यह चूर्ण समस्त प्रकार के शूलांको नष्ट करता है ।
मात्रा - १ - १॥ माशा ।
अनुपान -
-- उष्ण जल ।
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