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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org - भैषज्य रत्नाकरः १०४ जब पुट स्वांगशीतल हो जाय तो शंखको निकाल कर पीस लें । भारत शंख उदर रोग, शूल, अम्लपित्त, विष्टम्भ, प्रमेह और हृद्रोगको नष्ट करता तथा अभिकी वृद्धि करता है । (७५४७) शङ्खयोग: ( वै. म. र. । पट. ११ ) शङ्खं विघृष्य सहसा प्रातः पीतं च सप्ताहात् । अपहरति कामलाति बाणो रामस्य ताटकां भीमाम् ॥ शंखको पानी के साथ घिस कर सात दिन तक प्रातःकाल पीनेसे कामलाका नाश हो जाता है । (७५४८) शङ्खवटी (१) (वृहद्) ( र. रा. सु. ; र. का. घे. ; भा. प्र. म. खं. २ । अजीर्णा. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ शकारादि ग्रन्थिकं चित्रकं चापि यवानीजीरकं तथा । जातीफलं लबङ्गं च पृथकर्षद्वयोन्मितम् ॥ रसो गन्धो विषं चापि टङ्कणं च मनःशिला । एतानि कर्षमात्राणि सर्व सवर्ण्य मिश्रयेत् ॥ सरावार्द्धन चुक्रेण सन्नीय वटिकां चरेत् । मासप्रमाणा सा वैद्यैर्ब्रहच्छडूखवटी स्मृता ॥ सर्वाजीर्ण प्रशमनी सर्वशूलनिवारिणी । विषूच्यलसकादीनां सद्यो भवति नाशिनी ॥ स्नुही ( थूहर ) का क्षार, आकका क्षार, इमलीका क्षार, अपामार्गका क्षार, केलेका क्षार, तिलका क्षार, पलाशक्षार और पांचो नमक १ - १ पल (५-५ तोले); सज्जीखार, जवाखार और सुहागा समान भाग मिश्रित ५ तोळे ले कर सबका बारीक चूर्ण बनावें और उसे १ सेर (८० तोले ) नीबू के रस में मिला दें । तदनन्तर उसमें ५ तोले शंखको तपा तपा कर सात बार बुझावें जिससे उसकी भस्म हो जाय । तत्पश्चात् उसमें १५ तोले सोंठ, १० तोले मिर्च, ५ तोले पीपल, २ ॥ तोले भुनी हुई हींग और २ || - २॥ तोले पीपलागूल, चीता, अजवायन, जीरा, जायफल और लौंगका चूर्ण तथा ११ - १| तोला शुद्र बछनाग, सुहागेकी खील और गनसिल एवं ११ - १ | तोला शुद्ध पारद और गंधककी कज्जली मिला कर घोटें और फिर २० तोले चुक डालकर खरल करें तथा १ - १ माशेकी गोलियां बना लें । स्नुगर्कचिश्चाऽपामार्गरम्भा तिलपलाशजान्। aria भिषगादद्यात्मत्येकं पलमात्रया || लवणानि पृथक् पञ्च प्रायाणि पलमात्रया । सर्जिकाच यवक्षारं टङ्कणं त्रितयं पलम् || स त्रयोदशपलं सूक्ष्मं चूर्ण विधाय तु । निम्बूफलर से प्रस्थसम्मिते तत्परिक्षिपेत् ॥ तत्र शङ्खस्य शकलं पलं वह्नौ प्रताप्य तु । वारान्निर्वापयेत्सप्त सर्व द्रवति तद्यथा ॥ नागरं त्रिपलं ग्राह्यं मरिचं च पलद्वयम् । पिप्पली पलमाना स्यात्पलार्द्ध भ्रष्टहिङ्गुकम् || अलसकादि रोगों का नाश होता है । इनके सेवन से अजीर्ण, शूल, विसूचिका और For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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