________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
१००
[शकारादि
।
इसे खाने से पूर्व जिह्नाको घी लगालेना चाहिये, तथा दवा काचकी नलीसे इस प्रकार कण्ठमें डालनी चाहिये कि जिससे वह दांतोंको न लगे ।
शङ्खचूर्ण यवक्षारं सर्जिकाक्षारटङ्गणम् । समञ्च पञ्चलवणं स्फटिकारी नृसादरः ॥ काचयां ततः क्षिप्त्वा वारुणीयन्त्रमुद्धरेत् । यामार्द्ध द्रावयत्येष शङ्खशुक्तिवराढकान् ॥ अशीसि नाशयेत् षट् च मूत्रकृच्छ्राश्मरीं तथा । उदराष्ट्रविधं हन्ति गुल्मप्लीहोदराणि च ॥ अजीर्ण नाशयेच्छीघ्रं ग्रहणीश्च विशुचिकाप । भुक्तशेषे च भोक्तव्यो बिन्दुमात्रो रसोत्तमः ॥ क्षणमात्राद्भवेद्भस्म पुनर्भोजनमिच्छति । प्रत्यहं भोजनान्ते च संसेव्योऽयं रसोत्तमः ॥ न रुजायां भयं कापि सत्यं सत्यं वदाम्यहम् | न देयं यस्य कस्यापि सदा गोप्यश्च कारयेत् ॥ रसः शङ्खद्रवो नाम वैद्यानामुपकारकः ॥
भारत-भैषज्य - -
इसके सेवनसे तीव्र शूल, प्लीहा, गुल्म, तूणी, प्रतूणी, ऊर्ध्व वात, अर्श, अजीर्ण और अग्निमांद्यका नाश होता है ।
(७५३९) शङ्खद्राव: ( ९ ) ( व. से. । उदरा. )
स्वर्जिक च यवक्षारः कासीसं टङ्कर्णं तथा । सौराहं सैन्धवश्चैव स्फटिकं नवसारकम् ॥ सर्वमेकत्र कर्त्तव्यं सूक्ष्मचूर्णन्तु कारयेत् । कूपिमध्ये क्षिपेत्तन्तु द्रावयेद्वावयन्त्रके ॥ गुल्मं प्लीहांस्तथानाहं रोगान्सर्वोदरांस्तथा । अशसि ग्रहणीदोषं भगन्दरवणानि च ॥ नाशयेन्नात्र सन्देहो नान्यथा शङ्करो ब्रवीत् ॥
सञ्जी, जवाखार, कसीस, सुहागा, सोरा, सेवा नमक, फिटकरी, और नौसादर समान भाग लेकर सबको एकत्र तरल करके आतशी शीशी में भरें और नलिकायन्त्र ( भपके) से अर्क खींच लें।
इसके सेवन से गुल्म, प्लीहा, आनाह, समस्त उदर रोग, अर्श, ग्रहणी, भगन्दर और व्रणका नाश होता है।
(७५४० ) शङ्खद्रावको रसः ( भै. र.; धन्व. । प्लीहय . ) योगिनीभैरवाभ्याञ्च बलिमादौ प्रदापयेत् । पश्चान्त्रश्च कर्तव्यमेवमाह परमेश्वरी ॥ रसः शङ्खद्रवो नाम शम्भुदेवेन भाषितः । गुह्याद्गुह्यतमं गुह्यमिदानीं कथ्यते मया ।।
- रत्नाकरः
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शंखद्रावक रसका आविष्कार शम्भु महादेवने किया था । इसे बनाने से पहिले योगिनी और भैरवको बली देनी चाहिये । यह एक अत्यन्त गुप्त प्रयोग है जो आज प्रकट किया जाता है ।
शंखचूर्ण, जवाखार, सञ्जीखार, सुहागा, पांचों नमक, फटकी और नौसादार समान भाग लेकर सबको आतशी शीशी में भरकर वारुणीयन्त्रकी विधि अर्क खींच लें।
यह रस शंख, सीप और कौड़ीको आधे पहर में गला देता है ।
इसके सेवन से अर्श, मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, आठ प्रकार के उदर रोग, गुल्म, प्लीहा, अजीर्ण, ग्रहणी रोग और विसूचिकाका नाश होता है ।
भोजनोपरान्त इसकी एक बूंद खा लेनेसे आहार तुरन्त पच कर पुन: भूख लग आती है।
For Private And Personal Use Only