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घृतप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
मिश्रकस्नेहः
मात्रा-१। तोला । ( व. से. । गुल्म.)
इसे १ सप्ताह तक सेवन कराना चाहिये । प्र. सं. २४५९ “ त्रिवृतादि मिश्रक स्नेहः' (५२६३) मुगादिघृतम् देखिये।
___(यो. र. । प्रदर.; च. द. । असृग्दरा.; (५२६२) मुण्डयादिघृतम् वं. से.; वृ. नि. र.; वृ. मा.; ग. नि. । प्रदरा.;
( हा. सं. । स्था. ३ अ. २३ ) वृ. यो. त. । त. १३४ ) मुण्डी गुडूची बृहतीद्वयं च मुद्गमाषस्य नि!हे रास्नाचित्रकमुस्तकैः ।
रास्ना समङ्गा कथितः कषायः । सिद्धं सपिप्पलीबिल्वैः सर्पिः श्रेष्ठमसृग्दरे । समं च तेनापि विमिश्रितं च ___ मूंग और उड़दका काथ ४-४ सेर तथा
दुग्धं दधि स्यान्नवनीतकं च ॥ रास्ना, चीता, नागरमोथा, पीपल और बेलगिरीका पचेत्सुधीमान् मृदुवह्निना च कल्क २० तोले (प्रत्येकका चूर्ण ४ तोले) लेकर
सिद्धं घृतं स्नेहनमेव पुंसाम् । सबको २ सेर घीमें मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । कर्पप्रमाणं विहितं च पाने
जब पानी जल जाए तो घृतको छान लें। चाभ्यअने भोजनके तथैव ॥ | यह घृत रक्त प्रदरको नष्ट करता है। ' बस्तौ हितं स्नेहनमेव पुंसां
( मात्रा-२ तोले । अनुपान-दूध। ) . सप्ताहकं वातविकारिणां च ॥ (काथ बनानेके लिये २-२ सेर मूंग और मुण्डी, गिलोय, छोटी और बड़ी कटेली, रास्ना | उड़दको पृथक् पृथक् १६-१६ सेर पानीमें पकाकर तथा मजीठ ५-५ तोले लेकर सबको अधकुटा ४-४ सेर शेष रक्खें) करके ३ सेर पानीमें पकावें । जब पौन सेर (५२६४) मूर्वाधं घृतम् (६० तोले ) पानी शेष रह जाए तो छान लें ।
(भै. र. वं. से.; च. द.; वृ. मा.; र. र.। पाण्डु.) तत्पश्चात् यह क्वाथ और ६०-६० तोले
मूतिक्तानिशायासकृष्णाचन्दनपर्पटैः । गोदुग्ध, गायका दही, नवनीत ( नौनी घी
त्रायन्तीवत्सभूनिम्बपटोलाम्बुददारुभिः ॥ मक्खन ) और ६० तोले पानी एकत्र मिलाकर
| अक्षमात्रैः घृतं प्रस्थं सिद्धं क्षीरचतुर्गुणम् । मन्दाग्निपर पकावें । जब घृत मात्र शेष रह जाय तो पाण्डुताज्वरविस्फोटशोथार्शोरक्तपित्तनुत् ॥ छान लें।
कल्क-मूर्वा, कुटकी, हल्दी, धमासा, पीपल, इसे वात विकारों में स्नेहनके लिये पिलाना, | सफेद चन्दन, पित्तपापड़ा, त्रायमाणा, कुड़ेकी छाल, मालिश करना, भोजनमें खिलाना और बस्तिमें | चिरायता, पटोल, नागरमोथा और देवदारुका चूर्ण प्रयुक्त करना चाहिये ।
११-१। तोला।
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