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मिश्रप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः घृतदुग्धौदनं पथ्यं कुर्याद्वै लवणं विना ।
(७१६९) वृन्ताकयोगः कामलां नाशयत्याशु वायुरभ्रं हरेद्यथा ॥
(यो. र. । स्नायु. ; वृ. नि. र.) ___७ नग इन्द्रायणके पत्तों और ( ३ माशे) वृन्ताकं भर्जितं भाण्डे कृत्वा दना सहोपरि। जीरेको गायके दूधमें एकत्र पीस कर ५ तोले रस
। बन्धयेत्स्नायुको बहिः पतति एवं सप्तदिनं निकालें । यह रस पिलानेसे अथवा इन्द्रायणकी जड़का
कार्यम् ॥ ७|| माशे रस दूधमें डाल कर पिलानेसे ३ दिनमें कामला अवश्य नष्ट हो जाती है ।
बैंगनको भूनकर दहीके साथ मिला कर
स्नायुक (नहरवे) पर बांधनेसे वह सात दिनमें पथ्य-घृत, दूध और भात ।
बाहर निकल आता है। अपथ्य-लवण ।
(७१७०) वेल्लादियोगः (७१६८) वृद्धदारुकाश्च्योतनम्
( यो. र. । पीनस.) ___(व. से. । बाला.)
वेल्लगोधूमभोजी च निद्राकाले च शीतलम् । स्वरसं वृद्धदारस्य माक्षिकेण समन्वितम् । जलं पिबति यो रोगी पीनसान्मुच्यते नरः ॥ आश्च्योतनेन बालानां कुकूणामयनाशनम् ॥ ___ सोनेसे पूर्व ( नासिका द्वारा ) शीतल जल
'बिधारेके स्वरसमें शहद मिला कर आंखमें पीने और गेहूंसे निर्मित आहार तथा काली मिर्च डालनेसे बालकोंका कुकूणक रोग नष्ट होता है। | सेवन करनेसे पीनस नष्ट हो जाती है ।
इति वकारादिमिश्रप्रकरणम्
इत्यो३म्
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