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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः घृतदुग्धौदनं पथ्यं कुर्याद्वै लवणं विना । (७१६९) वृन्ताकयोगः कामलां नाशयत्याशु वायुरभ्रं हरेद्यथा ॥ (यो. र. । स्नायु. ; वृ. नि. र.) ___७ नग इन्द्रायणके पत्तों और ( ३ माशे) वृन्ताकं भर्जितं भाण्डे कृत्वा दना सहोपरि। जीरेको गायके दूधमें एकत्र पीस कर ५ तोले रस । बन्धयेत्स्नायुको बहिः पतति एवं सप्तदिनं निकालें । यह रस पिलानेसे अथवा इन्द्रायणकी जड़का कार्यम् ॥ ७|| माशे रस दूधमें डाल कर पिलानेसे ३ दिनमें कामला अवश्य नष्ट हो जाती है । बैंगनको भूनकर दहीके साथ मिला कर स्नायुक (नहरवे) पर बांधनेसे वह सात दिनमें पथ्य-घृत, दूध और भात । बाहर निकल आता है। अपथ्य-लवण । (७१७०) वेल्लादियोगः (७१६८) वृद्धदारुकाश्च्योतनम् ( यो. र. । पीनस.) ___(व. से. । बाला.) वेल्लगोधूमभोजी च निद्राकाले च शीतलम् । स्वरसं वृद्धदारस्य माक्षिकेण समन्वितम् । जलं पिबति यो रोगी पीनसान्मुच्यते नरः ॥ आश्च्योतनेन बालानां कुकूणामयनाशनम् ॥ ___ सोनेसे पूर्व ( नासिका द्वारा ) शीतल जल 'बिधारेके स्वरसमें शहद मिला कर आंखमें पीने और गेहूंसे निर्मित आहार तथा काली मिर्च डालनेसे बालकोंका कुकूणक रोग नष्ट होता है। | सेवन करनेसे पीनस नष्ट हो जाती है । इति वकारादिमिश्रप्रकरणम् इत्यो३म् For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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