________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ]
चतुर्यों भागः
८१५
-
और सुहागेकी खील ३॥ ३॥ माशे तथा शुद्ध लोह भस्म समान भाग ले कर सबको एकत्र खरल जमोल गोटा ५ माशे ले कर प्रथम पारे गन्धककी | करके रक्खें । कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधि- इसे मिश्री, घी और शहदके साथ प्रातःकाल योंका चूर्ण मिला कर सबको भंगरे, मकोय और | सेवन करनेसे कामलाका नाश होता है । संभालुके रसमें सात सात दिन खरल करके काली
(७१४५) व्योषादियोगः मिर्च के समान गोलियां बना लें।
( ग. नि. । श्वयथु. ३३ ; रसे. चि. इन्हें दूधके साथ सेवन करनेसे आठ प्रकारके
म. । अ. ९) ज्वर; संभालु या बथुवेके रसके साथ सेवन करनेसे
व्योषं त्रिवृत्तिक्तकरोहिणी च ८० प्रकारके वातज रोग और गुड़के साथ सेवन
सायोरजस्तु त्रिफलारसेन । करनेसे ४० प्रकारके पैत्तिक रोग नष्ट होते हैं।
पीता कफोत्थं शमयेद्धि शोथं (७१४३) व्योषादिचूर्णम् (१)
गव्येन मूत्रेण हरीतकी वा॥ (व. से. । राजयक्ष्मा.)
सेठ, मिर्च, पीपल, निसोत और कुटकी; व्योपं शतावरी त्रिणि फलानि द्वे बले तथा। | इनका चूर्ण १-१ भाग तथा लोह भस्म सबके सर्वामयहरो योगः सेव्यो लोहरजोन्वितः ॥ । बरावर ले कर सबको एकत्र खरल करके रक्खें ।
सोंठ, मिर्च, पीपल, शतावर, हरे, बहेड़ा, इसे त्रिफलाके काथके साथ सेवन करनेसे आमला, बला (खरैटी ) की जड़ और अतिबला | अथवा हर के चूर्णको गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे (कंघी) को जड़; इनका चूर्ण १-१ भाग तथा | कफज शोथ नष्ट होता है। लोह भस्म सबके बराबर ले कर सबको एकत्र
व्रणगजाङ्कुशः खरल करके रक्खें ।
( र. र. । व्रणा.) ( मात्रा-३ रत्ती।)
प्र. सं. ३६५० नारायण रसः (१) देखिये। इसके सेवनसे क्षय आदि रोग नष्ट होते हैं।
(७१४६) व्रणरोपणरसः (७१४४) व्योषादिचूर्णम् (२)
(र. का. धे. । गण्डमाला.) ( वै. म. र. । पटल १०)
| गन्धेशाहिकणा तुल्यं त्र्यहं जम्बीरमर्दितम् । व्योष धात्री रजनी लोहं च सिताज्यमधु- कुमार्या नरमृत्रेण चित्रकेण च हिङ्गुना ॥
समेतानि । सौवर्चलेन च पृथग्युक्त्या च विविधैः क्रमात् । उपयुज्य कामलातः सुखी भवेद्वासरारम्भे ॥ व्रणरोगेषु संयोज्यो न योज्यः स्त्रीत्रणेषु च ॥
सेठ, मिर्च, पीपल, आमला, हल्दी और | एनं भगन्दरे गण्डमालास्वपि च योजयेत् ।
For Private And Personal Use Only