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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चतुर्थी भागः रसप्रकरणम् ] (७१२५) वैक्रान्तशोधन मारणे ( र. प्र. सु. । अ. ५ ; आ. वे. प्र. । अ. १३) कुलित्थक्वाथ संस्विन्नो वैक्रान्तः परिशुध्यति । म्रियतेऽष्टपुटैर्गन्धनिम्बूकद्रवसंयुतः ॥ वैकान्तको कुलथी के क्वाथ में स्वेदित करने से वह शुद्ध हो जाता है। aat as और नीबूके रसके योगसे आठ पुट देनेसे उसकी भस्म हो जाती है । (७१२६) वैक्रान्तसत्वपातनम् ( आ. वे. प्र. । अ. १३ ) क्रान्तानां पलं चैकं कर्षकं टङ्कणस्य च । रविक्षारैर्दिनं भाव्यं मये शिग्रुद्रवैर्दिनम् ॥ गुञ्जापिण्याकवह्नीनां प्रतिकर्षाणि योजयेत् । एतेन गुटिकां कृत्वा कोष्ठी यन्त्रे धमेद्दृडम् ॥ शङ्खकुन्देन्दुसंकाशं सत्त्वं वैक्रान्तजं भवेत् ॥ ५ तोले वैकान्त और १| तोला सुहागेको एकत्र मिला कर क्रमशः आकके दूध और सहजनेकी छाल रसमें पृथक् पृथक् १-१ दिन खरल करें और फिर उसमें ११ - १ तोला गुञ्जा (चौंटली) तिलकी खल ( या हींग ) और चीतेका चूर्ण मिला कर गोली बनावें । इसे कोष्ठी यन्त्र में तीव्राग्निमें धाने स्वच्छ श्वेत सत्व निकल आता है । (७१२७) वैक्रान्ताख्यरसः (र. रा. सु. । अर्शो. ; वृ.नि. र. । अर्शो.) मृतसूताभ्रवक्रान्तकान्तताम्रं समं समम् । सर्व तुल्येन गन्धेन म भल्लातकान्वितम् ॥ दिनैकं तद्रवैरेव वटीं कुर्यात् द्विगुञ्जकाम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८०७ भक्षयेद्गुदजान्हन्ति द्वन्द्वजं च त्रिदोषजम् ॥ वैक्रान्ताख्यो रसो नाम साध्यासाध्य शिशान्तये ॥ पारद भस्म, अभ्रक भस्म, वैक्रान्त भस्म, कान्त लोह भस्म और ताम्र भस्म १ - १ भाग तथा शुद्ध गन्धक ५ भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर १ दिन भिलावेके तेल में खरल करके २-२ रती की गोलियां बना लें । इनके सेवन से हर प्रकारके अर्शका नाश है। (७१२८) वैद्यनाथरस: ( र. र. स. उ. अ. १४ ; र. चं, । राजय . ) शंखस्य वलयं निष्कं चतुर्निष्का वराटिकाः । क नीलतुत्थं च तालगन्धकटङ्कणम् ॥ तारं नागं रसं चार्धनिष्कांश पूर्ववत् पुटेत् । पूर्णमण्डूरकल्पितलेपने पचेत् ॥ अस्यामा मरिचार्धमाषं ताम्बूलवल्लीरसमर्दितं च । तत्पत्रलिप्तं मधुनाऽवलिह्या यंगवीनेन घृतेन वाऽपि ॥ arshan निर्गते चापमल्पं पथ्यं भोज्यं लोकनाथोपदिष्टम् । यामे यामे चैवमामण्डलान्तं For Private And Personal Use Only सेव्यः सद्यः शोषजिद्वैद्यनाथः ॥ शंखनाभिकी भस्म १ निष्क [३॥॥ माशे), कौड़ी भस्म ४ निष्क, नीला थोथा १| तोला, तथा शुद्ध हरताल, गंधक, सुहागा, चांदी भस्म, सीसा भस्म और शुद्ध पारद आधा आधा निष्क लेकर सबको एकत्र खरल करके कौड़ी में भरें और
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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