________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७९०
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि
भावना त्रितयं दद्याद्धृङ्गराजरसेन च ।
वृद्धतालेश्वररसः (२) नागवल्ली रसेनैव तथाईकरसैविधा ॥
(र. चि. म. । अ. ९) ततः शुष्कं विधायाथ यथारोगे प्रयोजयेत् । प्र. सं. २६५६ “तालकेश्वरो रसः" सामं निरामं विज्ञाय दद्याद्गुनाचतुष्टयम् ।। | देखिये ।। महावातेऽपतन्त्रे च सर्वगात्रेषु शून्यताम् । (७०९७) वृद्धदारायलोहः सर्वज्वरहरः श्रेष्ठः सन्निपातांस्त्रयोदश ॥ ( रसे. सा. सं. ; र. र. ; धन्व. ; र. रा. सु. । इन्ति शीतं तथा स्वेदं श्वासं च प्रबलं कफम्।
आमवाता. ; रसे. चि. म. । अ. ९) प्रलापं चातिनिद्रां च रोमहर्षारुचिं तथा ॥ |
वृद्धदारत्रिवदन्ती गजपिप्पली मानकैः ।
त्रिकत्रयसमायुक्तैरामवातात्मकन्त्वयः ॥ शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध बछनाग, शुद्ध
सर्वानेव गदान्हन्ति केशरी करिणो यथा ॥ हिंगुल, सुहागेको खील, हर्रका चूर्ण, सोंठ, मिर्च, पीपल, सेंधा नमक, जायफल, ताम्र भस्म, स्वर्ण
विधारामूल, निसोत, दन्तीमूल, गजपीपल,
मानकन्द, सांठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला, भस्म, खुरासानी अजवायन, जीरा, अजवायन,
| बायबिडंग, नागरमोथा और चीता; इनका चूर्ण काकड़ासिंगी, असगन्ध और लौंग; इनका र्ण समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कजली
१-१ भाग तथा लोहभस्म सबके बराबर ले कर बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण
सबको एकत्र खरल करें। मिला कर सबको भंगरे, पान और अदरकके रसकी
इसके सेवनसे आमवात-जनित समस्त रोग
| नष्ट होते हैं। ३-३ भावना दे कर सुखा कर सुरक्षित रक्खें ।
( मात्रा-३ रत्ती। ) मात्रा-४ रत्ती।
_ (७०९८) वृद्धनवरसादिगुटिका इसके सेवनसे महावात, अपतन्त्रक, शरीरकी
( यो. चि. म. | अ. ३) शून्यता, समस्त प्रकारके ज्चर, १३ प्रकारके सन्नि
विडॉ त्रिफला व्योष चातुर्जातकचित्रकम् । पात, शीत, स्वेद, श्वास, प्रबल कफ, प्रलाप,
स्वर्णमाक्षी तवाक्षीरं जीमूतं वंशलोचनम् ।। अति निद्रा, रोम हर्ष और अरुचि आदिका नाश होता है ।
पक्वायसं पक्वलोहं शर्करापि समन्विता ।
गुटिका मधुसंयुक्ता प्रातरेकां तु भक्षयेत् ॥ वृद्धतालेश्वररसः (१) प्रमेहशोफारुचिरामवातं सकामलं पाण्डुगदं प्र. सं. २६५५ तालकेश्वरो रसः (१६)
सकुष्ठम् । देखिये।
दन्तीकरिकर्णाग्निमानकैरिति पाठान्तरम् ।
For Private And Personal Use Only