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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि दिन अदरकके रसमें घोट कर सुखा कर सुरक्षित विद्रधि ज्वरगरं शिरोगदं वरखें । नेत्ररोगमखिलं हलीमकम् । मात्रा-२ माशा। हन्ति वृष्यतममेतदभ्रक ( व्यवहारिक मात्रा-~-३ रत्ती।) वीरभद्रमतिबल्यमुत्तमम् ॥ भक्षितं विविधभक्ष्यमागलं इसके सेवनसे सन्निपात नष्ट होता है। काष्ठसङ्घमपि भम्मतां नयेत् ।। अनुपान----चीता, अदरक और सेंधा समान २॥ तोले सहस्रपुटी अभ्रक भस्मको ९० भाग ले कर चूर्ण बनार्वे । रस खानेके पश्चात् यह दिन चीतके म्बरसमें खरल करें और फिर अदचूर्ण पानीके साथ पीना चाहिये । रकके रसमें घोट कर ( १-१ रत्तीकी) गोलियां (मात्रा-२.-२॥ माशे ।) | बना लें। इनमस नित्य प्रति १ गोली पोनमें रखकर (७०९३) वीरभद्राभ्रकः । या अदरकके टुकड़े के साथ सेवन करनेसे अग्निमांद्य(भ, र. : र. रा. मुं । अग्निमां.) का नाश हो कर जठराग्नि शीघ्र ही अत्यन्त तीव्र अभ्रक पुटसहस्रमारितं हो जाती है। कर्पयुग्ममतिनिर्मलीकृतम्। इसके अतिरिक्त यह रस श्वास, कास, वमन, वासराणि नवति विमर्दितं शाथ, कामला, प्लीहा, गुल्म, उदर रोग, अरुचि, चित्रकस्वरससाधुसिक्तकम् ।। भ्रम, रक्तपित्त, यकृत , अम्लपित्त, शूल, विसूचिका, शृङ्गवेररसमर्दिता वटी आमवात, वातरक्त, दाह, शीत. निर्बलता, कृशता, कारिता सकलरोगनाशिनी । विद्रधि, ज्वर, गरविष, शिरोरोग, समस्त नेत्ररोग भक्षिता भुजगवल्लिपत्रकैः और हलीमकको भी नष्ट करता है। शृङ्गवेरशकलेन वा पुनः ॥ यह अत्यन्त वृष्य और बलकारक है तथा वहिमान्यमभिनाश्य सत्वरं गरिष्ठसे गरिष्ठ पदार्थोकी भारी मात्राको भी शीत्रही कारयेत प्रखरपावकोत्करम । पचा देता है । श्वासकासवमिशोथकामला (७०९४) वीरविक्रमो रसः प्लीहगुल्म जठरारुचिभ्रमान ॥ (बृ. यो. त. । त. ११८) रक्तपित्तयकृदम्लपित्तकं पारदं च पलान्यष्टौ गन्धकं तालकं शिला । शूलकोष्ठ जगदान विमूचिकाम् । त्रितयं पारदं साम्यं मर्दितं मूक्ष्मचूर्णितम् ।। आमवातवहुवातशोणितं काचकूप्यां च पूर्णन वालुका यन्त्रपाचितम् । दाहशीतबल हासकार्यकम् ॥ त्रिदिनं तमहोरात्रं पाकशुद्धं विचक्षणः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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