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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि छिलके रहित कौंचके बीजोंका तथा छिलके | एकत्र मिला कर तीन दिन अम्ल वर्गके रसमें रहित उड़दका चूर्ण समान भाग ले कर दोनोंको | खरल करें और फिर उसमें समान-भाग-मिश्रित नारियलके पानीमें भिगो कर रख दें और १ पहर | जवाखार, सजीखार और पांचों नमकका चूर्ण पश्चात् पीस कर उसमें उसका बीसवां भाग (८ भाग ) मिला कर ३ दिन संभालुके रसमें अभ्रक भस्म मिला कर ३-३ माशेके वटक बनावें | घोटें । तदनन्तर जब वह सूख जाय तो उसमें और उन्हें घीमें तल लें। उसका अष्टमांश शुद्ध बछनागका चूर्ण और उतना इनमें शहद और घी मिला कर मिश्रीयुक्त | ही सुहागा मिला कर सबको १ दिन जम्बीरी दूधके साथ सेवन करनेसे कामशक्ति अत्यन्त प्रबल | नीबूके रसमें घोट कर २-२ रत्तीकी गोलियां हो जाती है। बना लें। (६९८०) वातकण्टकरसः । यह रस वातव्याधि और सन्निपातको नष्ट ( रसे. सा. सं. ; धन्व. ; र. रा. सु. । वात.) | करता है । इसे अदरकके रस अथवा घीके साथ वज्रमृताभ्रहेमातीक्ष्णमुण्डं क्रमोत्तरम् । सेवन करना चाहिये। मरिचं मईयेदम्लवर्गेण दिवसत्रयम् ॥ ___अनुपान-संभालुकी जड़का चूर्ण और द्विक्षारं पश्चलवणं मर्दितं स्यात्सम समम् । शुद्ध भैंसिया गूगल समान भाग ले कर आवश्यकततो निर्गुण्डिकाद्रावैर्मईयेदिवसत्रयम् ॥ तानुसार घी मिला कर एकत्र कूटें और ११-१। शुष्कमेतद्विचूाथ विषञ्चास्याष्टमांशतः। तोलेकी गोलियां बना लें । औषध खानेके पश्चात् टङ्कणं विषतुल्यांशं दत्त्वा तं जम्बीरद्रवैः ॥ इनमेंसे एक एक गोली धीमें मिला कर देनी भावयेदिनमेकन्तु रसोयं वातकण्टकः । चाहिये । एवं स्निग्धोष्ण आहार कराना चाहिये । दातव्यो वातरोगेषु सन्निपाते विशेषतः ॥ (व्य. मा.-३ माशे) द्विगुञ्जामाकद्रावैघृतैर्वा वातरोगिणे । सन्निपातमें औषध खिलानेके पश्चात् मूसली. निर्गुण्डीमूलचूर्णन्तु महिषाक्षश्च गुग्गुलुम् ॥ का काथ पिलाना चाहिये। समांशं मईयेदाज्ये तद्वटी कर्षसम्मिता । वातकफसङ्ग्रहणीहरलोहम् अनुयोज्यघृतैनित्यं स्निग्धमुष्णश्च भोजयेत् ॥ (र. का. धे. । ग्रहण्य. ) मण्डलं नाशयेत्सर्वं वातरोगे विशेषतः।। प्र. सं. ६४२७ लोहरसायनम् (६) देखिये । सन्निपाते पिवेच्चानु तालमूलीकषायकम् ॥ X (६९८१) वातकुलान्तकरसः हीरा भस्म १ भाग, अभ्रक भस्म २ भाग, ( रसे. सा. सं. ; भै. र. ; र. चं. ; धन्व. । स्वर्ण भस्म ३ भाग, ताम्र भस्म ४ भाग, तीक्ष्ण अपस्मारा.) लोह भस्म ५ भाग तथा मुण्ड लोह भस्म ६ भोग | मृगनामिशिला नागकेशरं कलिवृक्षजम् । और काली मिर्चका चूर्ण सात भाग ले कर सबको | पारदं गन्धकं जातीफलमेलालवङ्गकम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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