SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 739
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य रत्नाकरः [वकारादि (६९७४) वह्निकुमाररसः (१). गठौना, हींग, सुहागा, सेंधा नमक, धनिया, (वृ. नि. र. ; र. रा. सु. । वातव्या. ) जीरा, अजवायन, काली मिर्च, सांठ, लौंग, इला यची और बायबिडंग; इनका चूर्ण १।-१। तोला, टङ्कणः पारदो गन्धशङ्खौ कपर्दः लोहभस्म सबके बराबर तथा.२॥ २॥ तोले शुद्ध समोवत्सनाभस्त्रिभागस्तथा । पारद और गन्धककी कजली ले कर सबको एकत्र वल्लिजं अष्टभागं वहिपूर्वः कुमारः मिला कर खरल करें। स्मृतो भृङ्गनीरेण मर्दितः ॥ इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे वातरोगेषु सर्वेषु श्वसने वह्निमान्यके यकृत, प्लीहा, उदररोग, अफारा, गुल्म और हलीकफामये प्लीहकासे शूले वाग्निकुमारकः। मकका नाश होता तथा बल, वर्ण, अग्नि, कान्ति सुहागेकी खील, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, | और. पुष्टिकी वृद्धि होती है। शंख भस्म, और कौड़ी भस्म १-१ भाग, शुद्ध मात्रा-११माशा । आवश्यकतानुसार मात्रा बछनाग ३ भाग और काली मिर्चका चूर्ण ८ में न्यूनाधिकता कर लेनी चाहिये । भोग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें | और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर (६९७६) यहिचूडिकरसः भंगरेके क्वाथमें खरल करें। (र. का. धे. । कुष्ठा.) यह रस वात रोग, अग्निमांद्य, कफज रोग, मूतमेकं त्रिधा गन्धं शुद्धत्र्यूषणचित्रकम् । प्लीहा, कास और शूलको नष्ट करता है। प्रत्येकं सूततुल्यं स्यात्सर्वमेकत्र मर्दयेत् ॥ (६९७५) वद्विकुमाररसः (२) काकोदुम्बरिकाक्षीरैर्यामैकं मधुसंयुतम् । ( र. र. । उदर रोगा.) मापैकं किटिभं हन्ति रसोऽयं वह्निचूडिकः ॥ गुल्मरामठटकानि सैन्धवं धान्यजीरके। शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक ३ भाग यवानी मरिचं शुण्ठी लवङ्गैला विडङ्गकम् ॥ और सेांठ, मिर्च, पीपल तथा चीतेका चूर्ण १-१ भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें प्रत्येक तोलकं चूणे लौहचूर्णन्तु तत्समम् । और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिला कर सबको रसस्य गन्धकस्यापि पलैकं कज्जली शुभा ॥ १ पहर काकोदुम्बरिका (कठूमर ) के दूधमें घृतेन मधुना खाद्यो रसो वह्निकुमारकः।। यकृत्प्लीहोदरानाहं हन्ति गुल्मं हलीमकम् ॥ खरल करें। बलवर्णाग्निजननः कान्तिपुष्टिविवर्द्धनः। मात्रा-१ माशा । मासमेकं प्रकर्तव्यं युक्त्या वा त्रुटिवर्द्धनम् ॥ इसे शहदके साथ सेवन करनेसे किटिभ कुष्ठ श्रीमद्गहननाथेन रचितो विश्वसम्पदि ॥ | नष्ट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy