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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६८ www.kobatirth.org फिर इस क्वाथ और निम्नलिखित कल्क तथा एकबारकी ब्याही हुई गायके चार गुने दूध के साथ सिद्ध करें । भारत - भैवज्य - रत्नाकरः कल्क द्रव्य - पृष्टपर्णी, मुद्रपर्णी, माषपर्णी, काकोली, कौंच के बीज, ऋषभक (अभाव में विदारी - कन्द ) वृद्धि (अभाव में बाराही कन्द) और मेदा । सब चीजें ११ - १ तोला लेकर एकत्र पीसलें । (५२२६) महाकल्याणघृतम् (२) (वा. भ. । उ. त. अ. ६२ उन्माद ; सु. सं.) विडङ्गत्रिफलास्तमज्जिद्वादाडिमोत्पलैः । श्यामैलवालुकैलाभिश्चन्दनामरदारुभिः ॥ वर्हिष्ठकुष्ठरजनीपर्णिनीशारिवाहयैः । हरेणुका त्रिवृद्दन्तीव चातालीशकेशरैः २ ।। द्विक्षीरं साधितं सर्पमतीकुसुमैः सह । गुल्मका सज्वरश्वासक्षयोन्मादनिवारणम् ॥ एतदेव हि सम्पत्रं जीवनीयोपसम्भृतम् । चतुर्गुणेन दुग्धेन महाकल्याणमुच्यते ॥ अपस्मारं ग्रहदोषं क्लैव्यं काश्यमवीजताम् । घृतमेतन्निहन्त्याशु ये चादौ गदिता गदाः || बायबिड़ङ्ग, हर्र, बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, मजीठ, अनारदाना, नीलोफर (नीलकमल), फूलप्रियंगु, एलबालुक, इलायची, सफेद चन्दन, देवदारु, सुगन्धवाला, कूठ, हल्दी, पृष्ठपर्णी, शालपर्णी, १ "द्रयैः" इति पाठान्तरम् । २ " नागरैः” इति पाठान्तरम् । यह बन्ध्या स्त्रियोंके लिये अत्यन्त हितकारी आयु और वर्द्धक है तथा समस्त गृहदोष को नष्ट करता है । (चरक कल्याणघृत). [मकारादि सपत्र, शारिवा, रेणुका, निसोत, दन्तीमूल, बच, ताली - नागकेसर और चमेली के फूल १-१ तोला लेकर सबको एकत्र पीसलें, फिर २०० तोले (२ ॥ सेर) गायके धीमें यह कल्क और ५-५ सेर गाय और बकरीका दूध मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें । जब दूध जल जाय तो घृतको छानकर सुरक्षित रक्खें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसका नाम कल्याणघृत है । यदि उपरोक्त कल्ककी ओषधियांमें १-१ तोला जीवनीय गणकी ओषधियां और बढ़ा दें तो इसीका नाम महाकल्याण घृत हो जाता है । यह घृत गुल्म, खांसी, ज्वर, श्वास, क्षय, उन्माद, अपस्मार, ग्रहदोष, क्लीवता, कृशता और वीर्य की कमी को शीघ्र ही नष्ट कर देता है । ( जीवनीय गण - जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्रपर्णी, मापपर्णी, जीवन्ती और मुलैठी 1 ) (५२२७) महाकल्याणघृतम् (३) (सु. सं. । उ. त. अ. ३९ ज्वर. ) एतैरेव यथाद्रव्यैः सर्वगन्धैश्च साधितम् । कपिलाया घृतप्रस्थं सुवर्णमणिसंयुतम् ॥ तत्क्षीरेण सहैकध्यं प्रसाध्य कुसुमैरिमैः । सुमनश्चम्पकाशोकशिरीषकुमुभैर्धृतम् ॥ तथा नलदपद्मानां केशरैर्दाडिमस्य च । तिथौ प्रशस्ते नक्षत्रे साधकस्यातुरस्य च ॥ कृतं मनुष्यदेवाय ब्राह्मगैर भिमन्त्रितम् । दत्तं सर्वज्वरान्हन्ति महाकल्याणकं घृतम् ॥ दर्शनस्पर्शनाभ्यान्तु सर्वरोगहरं शिवम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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