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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि तुलसीपत्रसंयुक्तं प्रमेह नाशयेद्धवम् ॥ वंग भस्मको पीपलके चूर्णके साथ सेवन करघृतेन पाण्डुरोगं च टङ्कणैगुल्मनाशनम् । नेसे अग्निमांद्य, हल्दीके चूर्णके साथ सेवन करनेसे हरिद्रया रक्तपित्तनी मधुना बलबुद्धिकृत् ॥ ऊर्ध्व श्वास; चम्पाके फूलोंके स्वरसके साथ सेवन पिप्पल्या चाग्निमान्यत्वं निशया चोर्ध्वश्वासहृत करनेसे शरीरकी दुर्गन्धि और नीमके पत्तोंके रसके चम्पकस्वरसेनैव दुर्गन्धिं नाशयेद् ध्रुवम् ॥ साथ खानेसे दाहका नाश होता है । निम्बकस्वरसेनाढयं देहे दहनशान्तये ।। वीर्यस्तम्भनके लिये वंग भस्ममें कस्तूरी कस्तूरी वङ्गसंयुक्तं भक्षणाद्वीर्य रोधकृत् ॥ मिला कर सेवन करना चाहिये । खदिरक्वाथयोगेन चर्मरोगान् जयेदसौ।। यदि वंग भस्मको खैरके काथके साथ सेवन पूगीफलस्य सार्द्धनाजीर्ण नाशयते क्षणात् ।। किया जाय तो चर्म रोगोंका और सुपारीके चूर्णके दुग्धसार्द्धं भवेत्तुष्टिविजया स्तम्भनं भवेत् । साथ खानेसे अजीर्णका नाश होता है। लशुनैर्वातजा पीडां नाशयेनात्र संशयः ।। दूधके साथ वंग भस्म सेवन करनेसे तुष्टि समुद्रफलसंयोगानिर्गुण्डया सह भक्षणात् । प्राप्त होती है; भांगके साथ सेवन करनेसे वीर्यस्तकुष्ठं नाशयते क्षिप्रं सिंहनादे मृगा इव ॥ म्भन होता है। देवपुष्पस्य संयोगे समुद्रफलयोगतः। यदि वंग भस्मको ल्हसनके कल्कके साथ नागपत्ररसैर्लेप्याल्लिङ्गटद्धि प्रजायते ॥ कौब्जेऽपामार्गमूलेन प्लीहे टङ्कणसंयुतम् । खाया जाय तो वातज पीड़ा अवश्य नष्ट हो जाती है। रसोनतैलयुनस्यमपस्मारनिषूदनम् ॥ यवानिकायुतं वाते वाजिगन्धा युतं तु वा । समुद्रफलके चूर्णमें वंगभस्म मिला कर संभालुके जलोदरे त्वजाक्षीरसंयुतं गुणकृद्भवेत् ॥ रसके साथ सेवन करनेसे कुष्ठ अत्यन्त शीघ्र जातीफलाश्वगन्धाभ्यां कटिपीडानिवारणम्॥ नष्ट हो जाता है ।। ___वंग भस्म, लौंगका चूर्ण और समुद्र फलका वंग भस्म कपूरके साथ सेवन करनेसे मुखकी चूर्ण समान भाग ले कर तीनोंको एकत्र मिला कर दुर्गन्धको नष्ट करती है; जायफलके साथ देनेसे पानके रसमें घोट कर लेप करनेसे लिङ्ग वृद्धि शरीरको पुष्ट करती है; तुलसी पत्रके साथ देनेसे साथ देनेसे | होती है। प्रमेहको; घृतके साथ पाण्डुको; सुहागेके साथ ___वंग भस्मको कुजतामें अपामार्गकी जड़के गुल्मको और हल्दीके साथ सेवन करनेसे रक्त साथ; प्लीहावृद्धिमें सुहागेके साथ; वातव्याधिमें पित्तको नष्ट करती है। अजवायन या असगन्धके साथ; जलोदरमें बकरीके इसे शहदके साथ सेवन किया जाय तो बल दूधके साथ और कमरके दर्दमें जायफल तथा बुद्धिकी वृद्धि होती है। असगन्धके चूर्णके साथ सेवन करना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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