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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९८ भारत-मैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि (६८९५) वङ्गभस्मयोगः (४) | रगड़ते रहें । इस विधिसे दो पहरमें बंगकी भस्म ( यो. र. ; वृ. नि. र. । प्रमेहा.) हो जाती है । उक्त दोनों छालोंका चूर्ण बंगसे वङ्गं शिलाजतुयुतं तु मतं प्रमेहे चतुर्थाश लेना चाहिये और उसमेंसे ज़रा ज़रोसा धातुक्षये दुर्बलनष्टशुक्रयोः। डालते हुवे दो पहरमें (वंग भस्म होने तक ) वह अभ्रण युक्तं तु सतप्रद स्या सम्पूर्ण चूर्ण समाप्त करना चाहिये । ज्जातीफलार्ककरहाटलवङ्गयुक्तम् ॥ तदनन्तर भस्मके स्वांगशीतल होने पर उसमें उसके बराबर हरताल मिला कर दोनोंको बंग भस्म शिलाजीतमें मिला कर सेवन करना प्रमेह, धातुक्षय, दुर्बलता और शुक्रनाशमें | नीबूके रसमें घोट कर टिकिया बनावें । और उन्हें हितकारी है। सुखा कर शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें बंग भस्म, अभ्रक भस्म, जायफलका चूर्ण, पकावें । ताम्र भस्म, स्वर्ण भस्म और लौंगका चूर्ण समान - इसके पश्चात् उसमें पुनः दसवां भाग हरभाग ले कर सबको एकत्र मिला कर सेवन करनेसे ताल मिला कर नीबूके रसमें १ पहर मर्दन करके पुत्र प्राप्ति होती है। टिकियां बनावें और शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें पकावें। (मात्रा-३ रत्ती ।) ___ इस प्रकार दस पुट देनेसे सेवन करने योग्य (६८९६) वङ्गमारणम् (१) भस्म तैयार हो जाती है। ( हरबार दसवां भाग (भा. प्र. । पू. खं. १; शा. सं. । .खं. २ अ. हरताल मिला कर नीबूके रसमें घोटना चाहिये ।) ११ ; आ. वे. प्र.। अ. ११ ; यो. __नोट-आ. वे. प्र. में. वंग भस्मके समान अथवा चि. म. । अ. ७) चौथा भाग या अष्टमांश हरताल मिला कर नींबू मृत्पात्रे द्राविते वङ्गे चिञ्चाश्वत्थत्वचो रजः। | या घृतकुमारीके रसमें घोटनेके लिये लिखा है। क्षिप्त्वा वङ्गचतुर्थांशमयोदा प्रचालयेत् ॥ एवं उसके मतानुसार हरताल केवल प्रथम पुटमें ततो द्वियाममात्रेण वङ्गभस्म प्रजायते । । ही डालनी चाहिये और शेष ६ पुट बिना हरताल अथ भस्मसमं तालं क्षिप्त्वाम्लेन विमर्दयेत ॥ मिलाये ही नींबू या घी कुमारके रसमें घोट घोट ततो गजपुटे पक्त्वा पुनरम्लेन मर्दयेत् । कर देनी चाहिये। तालेन दशमांशेन याममेकं ततः पुटेत् ॥ (६८९७) वङ्गमारणम् (२) एवं दशपुटैः पक्वं वङ्गं भवति मारितम् ॥ (रसे. सा. सं. ; वृ. यो. त.। त. ४१ ; यो. त. । बंगको मृत्पात्रमें पिघला कर उसमें समान त. १७ ; आ. वे. प्र.। अ. ११ ; र. मं.) भाग मिश्रित इमली और पीपल वृक्षकी छालका वॉ सतालमर्कस्य पिष्ट्वा दुग्धेन सम्पुटेत् । चूर्ण ज़रा ज़रासा डालते और लोहेकी करछीसे शुष्काश्वत्थभवैर्वल्कैः सप्तधा भस्मतां नयेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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