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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि. ८ सेर घीमें उपरोक्त काथ और कल्क मिला २ सेर घीमें उपरोक्त काथ, कल्क और ४. कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो सेर दूध मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें और जलांश घीको छान लें। शुष्क हो जाने पर घीको छान लें। . ' इसके सेवनसे २० प्रकारके प्रमेह, गुल्म, .. . इसके सेवनसे.त्रिदोषज ग्रहणी, अर्श, मलावशोथ, कुष्ठ, अर्श, श्वास, हिक्का और उदर रोगोंका रोध, वायु और प्रवाहिकाका नाश होता तथा. नाश होता है। बलवर्ण और अग्निको वृद्धि होती है । ( मात्रा-१ तोला ।) यह घृत हृदयके लिये भी हितकारी है । (मात्रा--१ तोला।) वृहदासाद्यं घृतम् (६७६५५) व्याघ्रीघृतम् (व. से. ; रे. र. । रक्तपित्ता.) (.यो. र. ; भै. र. । स्वरभेदा. ; ग. नि. । प्र. सं. ५२४८ महावासाद्यं घृतम् देखिये । स्वरभंगा. ; वृ. मा.। स्व. ; व. से. । वृहन्नाराचकं घृतम् __ अरोचका. ; वृ. यो. त.। त. ८१ ) ( भै. र. । उदर.) व्याघ्रीस्वग्सविपक्वं रास्नावाटयालगोक्षुरप्र. सं. ३४८३ नाराचघृतम् (वृहद् ) __ व्यापैः। देखिये । सर्पिः स्वरोपघातं हन्यात् कासश्च पञ्चविधम् ।। शुष्कद्रव्यमुपादाय स्वरसानामसम्भवे । ..(६७६४) वृहन्मसूराद्य घृतम् । वारिण्यष्टगुणे साध्यं ग्राह्यं पादावशेपितम् ॥ (व. से. । ग्रहण्य.) कल्क--रास्ना, पीले फूलकी खरैटी, गोखरु, ममूरस्य तुला क्याथे घृतप्रस्थं विपाचयेत् । | सांठ, मिर्च और पीपल ५-५ तोले ले कर सबको पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरम् ॥ एकत्र पीस लें। तन्सिद्धं द्विगुणे क्षोरे ग्रहणीनं त्रिदोषनुत । ३ सेर धीमें यह कल्क और १२ सेर कटेली दुर्नामानिलविष्टम्भं जयेच्चैव प्रवाहिक म् ॥ का स्वरस डाल कर मन्दाप्ति पर पकावें । जब बलवर्णकरं हृद्यमग्निसन्दीपनं परम् ॥ पानी जल जाय तो धीको छान लें। - क्वाथ-३ सेर १० तोले मसूरको कूट इसके सेवनसे स्वरभंग और पांच प्रकारकी कर २५ सेर पानीमें पकावें और ६। सेर पानी खांसी नष्ट होती है। (मात्रा--१ तोला) शेष रहने पर छान लें। यदि कटेलीका रस न मिले तो ६ सेर कटेली. ___करक--पीपल, पीपलामूल, चव, चीता और को ४८ सेर पानीमें पकावें और १२ सेर रहने सेठ ४-१ तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें। । पर छान लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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