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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारतत- भैषज्य रत्नाकरः ६४२ १० तोले ले कर सबको एकत्र मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो घृतको छान लें I इसे सेवन करनेसे भस्मक रोग नष्ट होता है । (६७४९) विदारीघृतम् (२) ( भै. र. ; व. से. ; भा. प्र. । म. ख. २ । मूत्राघाता. ) विदारी कृषको यूथी मातुलुङ्गी च भृस्तृणम् । पाषाणभेदः कस्तूरी वसुको वशिरोऽनलः ॥ पुनर्नवा वचा रास्ना बला चातिवला तथा । कशेरुविशृङ्गाटतामलक्यः स्थिरादयः ॥ शरेक्षुदर्भमूलञ्च कुशः काशस्तथैव च । पद्वयन्तु संहृत्य जलद्रोणे विपाचयेत् ॥ पादशेषे रसे तस्मिन् घृतप्रस्थं विपाचयेत् । शतावर्यास्तथा धात्र्याः स्वरसो घृतसम्मितः ॥ teri aante काषिकाण्यपराणि च । agart format द्राक्षा काश्मर्य सपरूपकम् ॥ एला दुरालभा कौन्ती कुङ्कुमं नागकेशरम् । जीवनीयानि चाष्टौ न दत्वा च द्विगुणं पयः ॥ एतत्सर्पिर्विपक्तव्यं शनैर्मृद्वशिना बुधैः । मूत्राघातेषु सर्वेषु विशेषात्पित्तजेषु च ॥ शर्करापरिशुलेषु शोणितप्रभवेषु च । हृद्रोगे पित्तगुल्मे च वातासृऋपित्तजेषु च ॥ कासश्वासक्षतोरस्के धनुःस्त्रीभारकर्षिते । तृष्णाच्छर्दिमनःकम्पशोणितच्छर्दिने तथा ॥ रक्ते यक्ष्मण्यपस्मारे तथोन्मादे शिरोग्रहे । योनिदोषे रजोदोषे शुक्रदोषे स्वरामये || एतत्स्मृतिकरं वृष्यं वाजीकरणमुत्तमम् । पुत्र बलवर्णादयं विशेषाद्वातनाशनम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ वकारादि पानभोजननस्येषु न क्वचित्प्रतिहन्यते । विदारीघृतमित्युक्तं रसायनमनुत्तमम् ॥ क्वाथ -- विदारीकन्द, बासा ( अ सा ), जूही की जड़, बिजा रेकी जड़, गन्धतृण, पाषाणभेद, कस्तूरी, आककी जड़, गजपीपल, चव, पुनर्नवा (बिसखपरा), बच, रास्ना, बला (खरैटी), अतिबला (कंधी), कसेरु, भिसा ( कमलकी जड़), सिंघाड़ा, भुई आमला, शालपर्ण्यादि पश्चमूल (शालपर्णी, पृष्टपर्णी, कटेली, बड़ी कटेली, गोखरु ), शर (सरकण्डे) की जड़, ईखकी जड़, दाभकी जड़, कुशकी जड़ और कासकी जड़ १०१० तोले ले कर सबको ३२ सेर पानीमें पकावें और ८ सेर पानी शेष रहने पर छान लें । अन्य द्रव पदार्थ -- शतावरका रस २ सेर; आमलेका रस २ सेर, दूध ४ सेर | कल्क - - खांड ३० तोले तथा मुलैठी, पीपल, द्राक्षा, खम्भारी, फालसा, इलायची, धमासा, रेणुका, केसर, नागकेसर, जीवक, ऋषभक, ऋद्धि, वृद्धि, मेदा, महा मेदा, काकोली और क्षीरकाकोली ११ - १ | तोला लेकर सबको एकत्र पीस 1 २ सेर घी में उपरोक्त काथ, समस्त द्रव पदार्थ, और कल्क मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब पानी जल जाय तो घीको छान लें। For Private And Personal Use Only इसके सेवन से समस्त प्रकारके मूत्राघात और विशेषतः पैत्तिक मूत्राघात एवं शर्करा, अश्मरी, शूल, रक्तज रोग, हृद्रोग, पित्तज गुल्म, वातरक्त, पित्त विकार, कास, श्वास, उरःक्षत, तृष्णा, छर्दि, रक्तकी वमन, क्षय, अपस्मार, उन्माद, शिरोग्रह,
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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