SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अवलेहमकरणम् ] बिजौरे नीबू का रस, हींग, अनारदाना, बिड लवण, और सेंधा नमक का अवलेह बनाकर सुरा मण्डके साथ सेवन करनेसे बातज गुल्म नष्ट होता है । चतुर्थी भागः ( बिजौरेका रस अन्य समस्त औषधोंसे चार गुना लेना चाहिये । ) (५२०१) मिश्यादिलेहः I (ग. नि. । बालरोगा. ११; वृ. मा. । बाल. ) मिशि कृष्णाञ्जनैर्लाजशृङ्गीमरिचमाक्षिकैः । लेहः शिशोर्विधातव्यश्छर्दिकासज्वरापहः ॥ सौंफ, पीपल, सुरमा, धानकी खील, काकड़ा - सिंगी और काली मिर्च समान भाग लेकर, चूर्ण बनाकर, शहद मिलाकर चटाने से बालकों की वमन, खांसी और ज्वरका नाश होता है। (५२०२) मुस्तायो लेहः ( ग. नि. । रक्तपित्ता. ८ ) मुस्ताङ्गाटकद्राक्षाला जखर्जूरगैरिकाः । रक्तपित्तहरा लीढाः क्षौद्रेणैक द्विसर्वशः ॥ नागरमोथा, सिंघाड़ा, मुनक्का, धानकी खील, खजूर और गेरु माटी समान भाग लेकर कूटने योग्य चीज़ों को कूट छानकर चूर्ण बनावें और बाकीको पत्थर पर पीसलें फिर सबको एकत्र मिलाकर शहद के साथ सेवन करें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२०३) मूर्वाद्यवलेहः (बृ. यो. त. । त. १४४; ग. नि. बालरोगा . ११) मूर्वाव्योपवचा कोलजम्वृत्वग्दारुसर्षपाः । सपाठा मधुना लीढाः स्तन्यदोषनिवर्हणाः || मूर्वा, सोंठ, मिर्च, पीपल, बच, बेरकी गुठलीकी मींगी, जामनकी गुठलीकी मींगी, दालचीनी, देवदारु, सरसो और पाठा समान भाग लेकर, चूर्ण बनाकर उसे शहद में मिलाकर चाटने से स्तन्य दोष ( दूध विकार) नष्ट हो जाते हैं । (५२०४) मृगनाभ्यादिलेह: भा. प्र. म. खं. स्वरभेदा. ) मृगनाभिः ससूक्ष्मैला लवङ्गकुसुमानि च । त्वक्क्षीरी चेति लेहोऽयं मधुसर्पिःसमायुतः ।। वास्तम्भमुग्रं जयति स्वरभ्रंशसमन्वितम् ॥ इति मकारावले हमकरणम् ५९ कस्तूरी, छोटी इलायची, लौंग और वंशलो चन समान भाग लेकर, चूर्ण बनाकर, शहद में मिलाकर चाटने से वाक्स्तम्भ ( आवाज बन्द हो जाना) और स्वरभंगका नाश होता है। (५२०५) मृणालाद्यवलेह : ( वृ. नि. र. ! मूर्च्छा. ) शीतेन तोयेन भृशं मृणालं कृष्णा च पथ्या मधुनावलिह्यात् । कुर्याच्च नामावदनावरोधं क्षीरं पिबेद्वाप्यथ मानुषीणाम् ॥ मूर्च्छाको नष्ट करनेके लिये कमलताल, पीपल और हर्रको शीतल जल के साथ पीसकर शहद में मिलाकर चटाना; ( क्षणभर के लिये ) रोगी की यह लेह एक दोषज, द्विदोषज और सन्नि- नासिकाके नथने और मुख बन्द कर देना और पात रक्तपित्तको नष्ट करता है । स्त्रीका दूध पिलाना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy