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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः विकारादि शर्करायास्तुगाक्षीर्याः क्षौद्रस्य च पृथक पृथक् । मुस्ताधात्रीशुभाभार्गोंत्रिसुगन्धैश्च कार्षिकैः । भागांश्चतुष्पलान् तत्र पिप्पल्याश्चावपेत् पलम् ॥ शैलेय विश्वधन्याकमरिचैश्च पलांशिकैः ॥ पलं पूर्वमतो लीव ततोऽन्नमुपयोजयेत् । पिप्पलीकुडवश्चैव मधु मानी पदापयेत् । यदीच्छेदक्षयं शुक्रं शेफसश्चोत्तमं वलम् ॥ कासं श्वासं क्षयं हिक्कां रक्तपित्तं हलीमकम् ॥ नवीन उडद और कौंचके बीज ४-४ सेर हृद्रोगमम्लपित्तश्च पीनसं च व्यपोहति । तथा जीवक, ऋषभक, जीवन्ती, मेदा, वृद्धि, शता- छिलके और बीज रहित उसीजे हुवे पेठेके वर, मुलैठी और असगन्ध १०-१० तोले ले कर टुकड़े ३ सेर १० तोले ले कर उन्हें २ सेर घीमें सबको एकत्र कूट कर आठ गुने पानीमें पकावें मन्दाग्नि पर पकावें । जब भुन कर लाल हो जाएं और चौथा भाग शेष रहने पर छान लें। तो उनमें ८ सेर बासेका काथ और ६। सेर खांड ___ तदनन्तर २ सेर गोघृतमें यह क्वाथ और मिला कर पकावें । जब अवलेह तैयार हो जाय २० सेर गोदुग्ध तथा २-२ सेर विदारीकन्द तो उसे अग्निसे नीचे उतार कर उसमें नीचे लिखी और ईखका रस मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें। ओषधियोंका चूर्ण और १ सेर शहद मिला कर जब घृत मात्र शेष रह जाय तो छान लें । और । सुरक्षित रखें। फिर उसमें २०-२० तोले खांड और बंसलोचन चूर्ण द्रव्य-नागरमोथा, आमला, बंसलो. का चूर्ण, ४० ताले शहद और ५ तोले पीपलका चन, भरंगी, दालचीनी, तेजपात और इलायचीका चूर्ण मिला कर सुरक्षित रक्खें । चर्ण ११-११ तोला; शिलाजीत तथा सेठ, धनिया और मिर्चका चर्ण ५-५ तोले, एवं पीपलका चूर्ण इसमेंसे ५ तोले औषध खाकर फिर अन्नाहार २० तोले। करना चाहिये। इसके सेवनसे खांसी, स्वास, क्षय, हिक्का, इसके सेवनसे लिंगकी शक्ति बढ़ती और शुक्र रक्तपित्त, हलीमक, हृद्रोग, अम्लपित्त और पीनसका क्षय नहीं होता। नाश होता है। (६७०५) वासाखण्डकूष्माडावलेहः । (६७०६) वासावलेहः (१) ( वृहद. ) (वासाखण्डः) (भै. र. । राजय.) (र, र. ; व. से. ; वृ. नि. र. । कासो. ; वं. से. । तुलामादाय वासाया जलद्रोणे विपाचयेत् । रक्तपित्ता. ; वृ. मा. । रक्तपित्ता ; भै. र. ; पादशेषे रसे तस्मिन् खण्डं पलशतं न्यसेत् ॥ च. द. । रक्तपि.) शनैर्मेद्वग्निता सम्यक् सिद्धे तत्र प्रदापयेत् । पञ्चाशच पलं स्विन्नं कूष्माण्डात्प्रस्थमाज्यतः । त्रिकटु त्रिमुगन्धश्च कट्पलं मुस्तमेव च ॥ ग्राह्यं पलशतं खण्डं वासा क्वाथ ढके पत्चे ॥ १ ऐलेयमिति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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