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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुग्गुलुपकरणम् ] चतुर्थो भागः ६१७ अथ वकारादिगुग्गुलुप्रकरणम् (६६८६) वज्रगुग्गुलुः घा त्था भिलावेका तेल डालते रहें । जब सब (र. र. । वातरक्ता.) चीजें मिल कर एकजीव हो जाएं तो उसे चिकने पात्रमें भरकर सुरक्षित रक्खें । त्रिकटु त्रिफला दन्ती चित्रकं त्रिता शठी। विडङ्ग मुस्तकं रात्रि बाकुचीन्द्रयवं वचा ।। ___इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे अकोठमूलं कुष्ठश्च राजवृक्षस्य मूलकम् । | विविध दोषोंसे उत्पन्न वातरक्त, श्लीपद, शोथ, एतेषां पलिक ग्राह्यं तत्सम गुग्गुलु कुरु ॥ शूल, प्रमेह, मेद, गलरोग, प्लीह, गुल्म, उदररोग, भल्लाततैलं द्विपलं गोघृतेन जडीकृतम् । अष्ठीला, खांसी, श्वास, अरुचि, जीर्णज्वर, आनाह, तत्र ताम्रहरितालं द्वयोःकुर्यात पलद्वयम् ।। संग्रहग्रहणी और पाण्डु, हलीमक तथा कामलाका सर्वमेकीकृतं यत्नात् पेषयित्वा सुपिण्डितम् । नाश और बलवर्णाग्निकी वृद्धि होती है। घृतभाण्डे तु संस्थाप्य खादेन्मास चतुष्टयम् ॥ (६६८७) वज्रवल्ल्यादिगुग्गुलुः गुग्गुलुर्वज मायं गहनानन्दभाषितः । (र. र. । भना.) देशकालवयोवह्नि दृष्ट्वा वा त्रुटिवर्द्धनम् ॥ वातरक्तं निहन्त्याशु नानादोषसमुद्भवम् । वज्रवल्ल्यर्जुनो वासा विशाला लोहटङ्कणौ । श्लीपदं शोथशूलानि मेहमेदोगलामयान् ॥ रसगन्धकसिन्धूत्थाः समभागेन चूर्णयेत् ।। प्लीहगुल्मोदराष्ठीलाकासश्वासमरोचकम् । चूर्णाद्गुणत्रयं ग्राह्यं गुग्गुलुं धृतपिट्टितम् । जीर्णज्वरञ्च सानाहं बलवर्णाग्निवर्द्धनम् ॥ वज्रवल्ल्यादिको नामगुग्गुलुः परिनिर्मितः ॥ संग्रहग्रहणीं दुष्टां पाण्डवादित्रितयं जयेत् ॥ गहनानन्दनाथेन भन्नरोगविनाशनः । सेठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला. | नाना भग्नं निहन्त्याशु बलवर्णाग्निवर्द्धनः ॥ दन्तीमूल, चीता, निसोत, कचर, वायबिडंग, कृमिकुष्ठाक्षिरोगाणां हन्ता ग्रन्थिव्यथापहः । नागरमोथा, हल्दी, बाबची, इन्द्रजौ, बच, अङ्गोठमूल, कटिहृद्रोगशमन आमवातनिषूदनः ।। कूठ और अमलतासकी जड़; इनका चूर्ण ५-५ हड़जोड़ी, अर्जुनकी छाल, बासा, इन्द्रायनकी तोले, शुद् गूगल सबके समान, भिलावेका तेल | जड़, लोहभस्म, सुहागेको खील, शुद्ध पारद, शुद्ध २० तोटे, गायका घी २० तोले, ताम्र भस्म ५ गन्धक और सेंधा नमक समान भाग एवं शुद्ध तोले और शुद्ध हरताल ( या हरताल भस्म ) ५ गूगल सबसे ३ गुना ले कर प्रथम पारे गन्धककी तोले ले कर समस्त ओपधियोंके चर्ण और गूगल- कजली बनावें और फिर गूगलमें थोड़ा थोड़ा को एकत्र मिलाकर कूटें और उसमें थोड़ा थोड़ा। घृत डाल कर कूटें । जब गूगल पतला हो जाय तो For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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