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गुटिकापकरणम् ]
चतुर्थों भागः
(६६८१) ,हणी गुटिका
तदनन्तर ८. सेर गायके घीमें यह काथ और (च.। चि. स्था. अ २) मुलैठी, द्राक्षा (मुनक्का), कठूमर, पीपल, कौंचके शरमूलेक्षुमूलानि काण्डेहूं सेक्षुबालिकाम् ।।
बीज, महुवेके फूल, खजूर, और शतावरका कल्क शतावरौं पयस्यां च विदारी कण्टकारिकाम् ॥
( सब चीजें समान भाग मिश्रित, पत्थर पर पिसी जीवन्ती जीवकं मेदां वीराश्चर्षभकं बलाम् ।
हुई १ सेर), एवं ८-८ सेर बिदारीकन्दका रस, ऋद्धिं गोक्षुरकं रास्नामात्मगुप्तां पुनर्नवाम ॥ आमलेका रस और ईखका रस तथा ३२ सेर पृथक् त्रिपलिकान् कृत्वा माषाणामाढकं नवम्। गायका दूध मिला कर पुनः पकावें। विपाचयेज्जलद्रोणे चतुर्भागश्च शेषयेत् ॥ जब जलांश शुष्क हो जाय तो घीको छान तत्र पेष्याणि मधुकं द्राक्षा फल्गु च पिप्पली। लें और उसमें १-१ सेर खांड और बंसलोचनका आत्मगुप्ता मधुकं च खजूरं च शतावरी ॥ चूर्ण, २० तोले पीपलका चूर्ण, ५ तोले काली विदार्यामलकेक्षणां रसस्य च पृथक पृथक । | मिर्चका चूर्ण; २॥-२॥ तोले दालचीनी, इलायची सर्पिषश्चाढकं दद्यात् क्षीरद्रोणञ्च तद्भिषक् ॥ और नागकेसरका चूर्ण एवं १ सेर शहद मिलाकर साधयेद् घृतशेषञ्च सुपूतं योजयेत् पुनः । ।५-५ तोलेके मोदक बनावें । शर्करायास्तुगाक्षीश्चूिर्णैः प्रस्थोन्मितैभिषक इन्हें अग्नि बलोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे पलैश्चतुभिर्मागध्याः पलेन मरिचस्य च । बल वीर्यकी अत्यन्त वृद्धि होती है। यह अत्यन्त त्वगेलाकेशराणाश्च चूर्णरईपलोन्मितै ॥ वृष्य है और इसे सेवन करनेसे मनुष्य घोड़ेके समान मधुनः कुडवाभ्याञ्च द्वाभ्यां तत् कारयेद्भिषक्। | स्त्रीसमागम कर सकता है। पलिका गुडिकाः कृत्वा ता यथाग्नि प्रयोजयेत्।।
वेदविद्यावटी एष वृष्यः परं योगो वृंहणो बलबर्द्धनः।।
रस प्रकरणमें देखिये । अनेनाश्व इवोदीर्णो लिङ्गमर्पयते स्त्रियाम् ॥
वैद्यनाथवटिका शर ( सरकण्डे ) की जड़, ईखकी जड़,
रस प्रकरणमें देखिये। काण्डेक्षु (ईख भेद) की जड़, ईक्षुबाबिका (कांस भेद) की जड़, शतावर, क्षीरकाकोली, विदारीकन्द,
वैद्यनाथवटी कटेलीकी जड़, जीवन्ती, जीवक, मेदा, शालपर्णी,
रस प्रकरणमें देखिये । ऋषभक, खरैटीकी जड़, ऋद्धि, गोखरु, रास्ना, (६६८२) व्योषादिगुटिका (१) कौंचके बीज और पुनर्न गा (साठी) की जड़, १५- (वै. र, ; वृ. नि. र. । कासा. ; शा. सं. । १५ तोले एवं नवीन उड़द ४ सेर ले कर सबको खं. २ अ. ७ ; यो. चि. म. । अ. ३) एकत्र कूट कर ३२ सेर पानीमें पकावें और ८ व्योषाम्लवेतसं नव्यं तालीसं चित्रकं तथा । सेर शेष रहने पर छान लें।
जीरकं तिन्तिडीकं च प्रत्येकं कर्षभागिकम् ॥
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