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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - भैषज्य - भारत-‍ ५४ चीजें को ११० तोले लेकर हर्रके सिवाय सब अकुटा करके और हरेको साबित ही डालकर ३२ सेर पानी में पकावें जब ४ सेर पानी शेष रहे तो हर्रोको निकालकर उन्हें सुवे या लोहेकी सींखसे बचें और फिर शहद में डाल दें । २१ दिन पश्चात् पुराने शहदको फेंक दें और उनमें नया शहद डाल दें। इस क्रिया हर्रे अत्यन्त स्वादिष्ट हो जाती हैं। इनमें से नित्य प्रति प्रातः काल १-१ हर्र सेवन करनी चाहिये । इन्हें सेवन करनेसे समस्त प्रकारका विसर्प, अठारह प्रकारके कुष्ठ, खुडवात, पामा, खाज, दाद, विस्फोटक, विद्रधि तथा अन्य त्वग्रोग और रक्त विकार नष्ट हो जाते हैं । मण्डूराद्यवलेहः प्रकरण में देखिये | (५१८८) मधुकादिलेहः ( वृ. मा. | कासा. ) मधुकं पिप्पली द्राक्षा लाक्षा शृङ्गी शतावरी ॥ द्विगुणो च तुगाक्षीरी सिता सर्वैश्वतुर्गुणा । लेहयेन्मधुसर्पिभ्यां क्षतकासनिवृत्तये ॥ मुलैठी, पीपल, मुनक्का, लाख, काकड़ासिंगी और शतावरे १-१ तोला तथा बंसलोचन १२ तो और खांड ७२ तोले लेकर मुनक्काको पत्थर पर पीसलें और अन्य चीजें को कूट छानकर महीन चूर्ण बनावें तथा उसे घी और शहद में मिलाकर रोगीको सेवन करावें । - रत्नाकरः [ मकारादि इसे सेवन करने से क्षतज ( उरःक्षतकी) खांसी नष्ट होती है । ( मात्रा - १ तोला ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरण में देखिये | मधुकाद्यवलेह : (भै. र. प्रदर. ) (५१८९) मधुपक हरीतकी (१) ( वृ. नि. र. । ग्रहण्य. ) कदम्बम्बचिञ्चानां त्वक्चूर्ण पलषोडशम् । अजागोमहिषीसूत्रं त्वक्षोडशगुणोत्तरम् ॥ काथयेत्पादशेषं तु शुद्धं कृत्वा विनिःक्षिपेत् । अभयानां शतैकं तु काथयेच्च कषायकम् || जीर्यते भया पचाद्भित्त्वा अण्डं निवारयेत् । भृङ्गी सुवर्चलं चूर्ण तुल्यं तेन प्रपूरयेत् ॥ अभयां वेष्टयेत्सूत्रैर्मधुमध्ये त्र्यहं क्षिपेत् । नित्यं क्षौद्रसमं भक्ष्या त्रिदोषार्शः प्रशान्तये ॥ For Private And Personal Use Only कदम्ब की छाल, नीमकी छाल और इमलीकी छाल समान - भाग- मिश्रित १ सेर लेकर सबको अधकुटा करके बकरी, गाय और भैंसके समान - भाग मिश्रित १६ सेर मूत्रमें पकावें और जब ४ सेर मूत्र शेष रह जाय तो उसे छानकर उसमें १०० हर्र डालकर पुन: पकावें जब हरें उसीज जाये तो उन्हें चाकूसे चीरकर उनके भीतर की गुठली निकाल डालें और उनमें भंग तथा स्वञ्चल ( काले नमक ) का समानभाग - मिश्रित चूर्ण भरकर उन्हें डोरेसे बांध दें और शहद में डाल दें एवं ३ दिन पश्चात् सेवन करावें ।
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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