________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि
निसोत, पटोलकी जड़ और त्रायमाणा १-१ भाग (६५३४) विश्वादिकषायः (३) तथा सेठ २ भाग ले कर क्वाथ बनावें। (ग. नि. । शूला. २३; भै. र. ; वृ. नि. र. ; यह क्वाथ अथवा आमलेका रस पीनेसे
व. से. । शूला.) पित्तज शोथ नष्ट होता है।
विश्वामेरण्ड मूलं क्वाथयित्वा जलं पिबेत् । (६५३२) विश्वादिकषायः (१) हिसौवर्चलोपेतं सद्यः शूलनिवारणम् ।। (यो. र. ; वृ. नि. र. । आमातिसारा. ; यो. | सेठ, और अरण्डकी जड़ समान भाग ले त.। त. २१)
कर क्वाथ बनावें। विश्वाभयाघनवचातिविषासुराह
इसमें हींग और काला नमक मिलाकर पीनेसे क्वाथोऽथ विश्वजलदातिविषागृतो वा। शूल नष्ट होता है । आमातिसारशमनः कथितः कषायः (६५३५) विश्वादिकषायः (४) शुण्ठीघनापतिविषामृतवल्लिजो वा ॥
(व. से. ; वृ. नि. र. । ज्वरा.) (१) सांठ, हरं, नागरमोथा, बच, अतीस | विश्वासताब्दभ्रनिम्बैः पञ्चमूलीसमन्वितैः । और देवदारु ।
कृतः कषायो हन्त्याशु वात पित्तभवं ज्वरम् ॥ (२) साठ, नागरमाथा, आर अतीस । सेठ, गिलोय, नागरमोथा, चिरायता और (३) सांठ, नागरमोथा, अतीस और गिलोय। पञ्चमूल ( शालपर्णी, पृष्टपर्णा, कटेली, कटेला,
ये तीनों क्वाथ आमातिसारको नष्ट | गोखरु ) समान भाग ले कर काथ बनावें । करते हैं।
इसके सेवनसे वातपित्त ज्वर नष्ट होता है। नोट-गदनिग्रहमें काथ नं. २ और ३ (६५३६) विश्वादिकषायः (५) संग्रहणी रोगमें लिखे हैं।
(भै. र. ; वृ. मा. । ज्वरा.'; वृ. नि. र. ; (६५३३) विश्वादिकषायः (२)
व. से. । ज्वरा.) (व. से. । शूला. ) | विश्वाम्बुपर्पटोशीरघनचन्दनसाधितम् । विश्वैरण्डयवक्वाथ: सद्यः शूलनिवारणः। | दद्यात्सु शीतलं वारि तृछदिज्वरदाहनुत् ।। तद्वदिन्द्रयवक्वाथो हिङ्गुसौवर्चलान्वितः ॥ सेठ, सुगन्धबाला, पित्त पापड़ा, खस, नाग
सोंठ, अरण्डमूल और इन्द्रजौका काथ शूलको | रमोथा, और लाल चन्दन समान भाग ले कर अत्यन्त शीघ्र नष्ट कर देता है।
| क्वाथ बनावें । ... इन्द्रजौके क्वाथमें हींग और काला नमक इसे ठण्डा करके पिलानेसे पिपासा, छर्दि, मिला कर पीनेसे भी शूल नष्ट होता है। ज्वर और दाहका नाश होता है।
For Private And Personal Use Only