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गुटिकाप्रकरणम्
चतुर्थो भागः मुस्तादिवटी
सेंधा नमक, बिडनमक, तालीसपत्र, नागकेसर, ( वृ. नि. र.)
तेजपात, दालचीनी, इलायची, जायफल, जावत्री, रस प्रकरणमें देखिये।
लौंग, मुरामांसो, कपूर और सफेद चन्दनका चूर्ण मृतसञ्जीवनीवटी
१-१ भाग तथा मेथीका चूर्ण सबके बराबर और
गुड़ समस्त पदार्थोसे दो गुना लेकर गुड़की चाशनी रस प्रकरणमें देखिये।
बनाकर उसमें कपूरके अतिरिक्त समस्त चीज़ोंका मृदीकादिगुटी
चूर्ण डालकर अच्छी तरह मिलादें एवं जब वह ( वृ. नि. र. रक्तपि.)
ठण्डा हो जाय तो उसमें उपरोक्त कपूरका चूर्ण रस प्रकरण में देखिये।
और थोड़ा थोड़ा घृत तथा शहद मिलाकर मोदक
बना लें। (५१८४) मेथीमोदकः
इन्हें यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे अग्नि (भै. र. । ग्रहणी.; धन्व.; र. र. । वाजीकरणा.)
| दीप्त और बल वर्णकी वृद्धि होती है। त्रिकटुत्रिफलामुस्तजीरकद्वय धान्यकम् ।
यह मोदक मेदरोगमें अत्यन्त गुणकारी हैं। कट्फलं पौष्करं शृङ्गी यमानी सैन्धवं विडम् ॥ तालीशकेशरं पत्रं त्वगेला च फलं तथा।
संग्रहणी, बीस प्रकारके प्रमेह, मूत्राघात, अश्मरी,
पाण्डु, खांसी, राजयक्ष्मा और कामलाको नष्ट तथा जातीकोषं लवङ्गश्च मुरा कपूरचन्दनम् ॥
दृष्टिको स्वच्छ करता है। यावन्त्येतानि चूर्णानि तावदेव तु मेथिका। सञ्चूयं मोदकः कार्यः पुरातनगुडेन च ॥
| इसे सेवन करनेसे स्त्रीके शिथिल स्तन पुनः घृतेन मधुना किञ्चित् खादेदपिवलं प्रति । कठिन तालफलके समान हो जाते हैं तथा उसे अग्निश्च कुरुने दीप्तं सामे मेदे महौषधम् ॥
पुत्र प्राप्ति होती है। बलवर्णकरो ह्येष संग्रहग्रहणीहरः।
(मात्रा-आधेसे १ तोले तक । ) प्रमेहान् विंशति हन्ति मूत्राघातं तथाश्मरीम् ॥ (५१८५) मेथीमोदकः (वृहत्) पाण्डुरोगं तथा कासं यक्ष्माणं हन्ति कामलाम् । ( भै. र. । ग्रहणी.) स्तनौ च पतितौ गाढौ स्यातां तालफलोपमौ॥ त्रिफला धान्यकं मुस्तं शुण्ठी मरिचपिप्पली । दृष्टिप्रसादनश्चैव नारीणाश्चैव पुत्रदः । कटफलं सैन्धवं शृङ्गो जोरकद्वयपुष्करम् ॥ भाषितं कामदेवेन मेथीमोदकसंज्ञकः॥ यमानी केशरं पत्रं तालीश बिडमेव च ।
सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, जातीफलं त्वगेला च जयित्रीन्दुलवङ्गकम् ॥ नागरमोथा, सफेद जीरा, काला जीरा, धनिया, शतपुष्पा मुरामांसी यष्टीमधुकपद्मकम् । कायफल, पोखरमूल, काकड़ा सिंगी, अजवायन, चव्यं मधूरिका दारु सर्वमेतत्समं भवेत् ।।
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