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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसप्रकरणम् ] चतुर्थी भागः अरण्डमूल और नागरमोथेका काथ पिलाना गुआ चतुष्टयं चास्य मरिचाज्यसमन्त्रितम् । चाहिये । ददीत दधिभक्तं च ग्रहण्यां च विशेषतः ।। यदि दस्त आने लगे तो दुग्धिका (दुद्धी) को अग्नि में सेक कर सेवन कराना चाहिये अथवा air चूर्णको ज़रा भूनकर रात्रिके समय शहदके साथ देना चाहिये । यदि अङ्गपीड़ा होती हो तो शरीर पर घीकी मालिश कराके उष्ण जलसे स्नान कराना चाहिये | लोकेश्वरपोटलीरसः ( रसे. सा. सं.; र. रा. सु. ; यो. र. ; र. चं. । राजयक्ष्मा. ; रसे. चि. म. । अ. ९; वृ. यो. त. । त. ७६; र. का. धे. । राजय. ; धन्व. प्र. सं. (६३८०) लोकनाथ रसः देखिये । लोकेश्वररत्नगर्भपोटलीरसः ( धन्व. । राजयक्ष्मा . ) प्र. सं. ६०४१ रत्नगर्भपोटली रस: देखिये । (६३८१) लोकेश्वररस: (१) (र. रा. सु. । अतिसारा. ; र. र. स. । अ. १६) द्वौ भागौ गन्धकस्याष्टौ शङ्खचूर्णस्य योजयेत् । एकमेव रसस्थांशमकक्षीरेण मर्दयेत् ॥ चित्रकस्य द्रवेणैव शोषयित्वा पुनः पुनः । एकीकृत्य रसेनाथ क्षारं दत्त्वा तदर्धकम् ॥ अक्षीरेण कुर्वीत गोलकानथ शोषयेत् । निरुध्य चूर्णलिप्नेथ भाण्डे दद्यात्पुरं ततः ॥ लोकनाथ रसो ह्येष सर्वातीसारनाशनः । गोतक्रेण निहन्त्याशु ग्रहणीगदमुत्कटम् || ૧૮ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -५३७ शुद्ध गन्धक २ भाग, शंख चूर्ण ८ भाग और शुद्ध पारद १ भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जलो बनावें और फिर उसमें शंख मिला कर सबको आको दूध और चीतामूलके काथकी पृथक् पृथक् कई कई भावना देकर सुखा लें और फिर उसमें सबसे आधा सुहागा मिला कर पुनः आक के दूध में खरल करके गोलियां बनावें और उन्हें सुखाकर चूने से पुते हुवे शरावोंमें बन्द करके (वराहपुटमें) पावें । यह रस समस्त प्रकारके अतिसारोंको नष्ट करता है । इसे गोत के साथ सेवन करने से प्रवृद्ध संग्रहणी शीघ्रही नष्ट हो जाती है । मात्रा - ४ रत्ती । इसे काली मिर्चके चूर्ण और घीके साथ सेवन करना तथा दही भात खाना चाहिये । (६३८२) लोकेश्वररस: (२) (र. रा. सु. ; रसे. सा. सं.; धन्व. । यक्ष्मा. ; वृ. यो. त. । त. ७६; रसे. चि. म. । अ. ९; यो. र. । क्षय. ) For Private And Personal Use Only पलं कपर्दचूर्णस्य पलं पारदगन्धयोः । माषश्च टङ्कस्यैव जम्बीराद्भिर्विमर्दयेत् ॥ पुटेल्लोकेश्वरी नाम्ना लोकनाथरसोत्तमः । ऋते कुष्ठं रक्तपित्तमन्यात्रोगान्बलाज्जयेत् ॥ पुष्टिवी प्रसादोज कान्ति लावण्यदः परः । कोस्ति लोकेश्वरादन्यो नृणां शम्भुमुखोद्गतः ॥
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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