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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [लकारादि (६३६९) लीलाविलासरसः (३) । (६३७०) लोकनाथपोटलीरसः ( भै. र. ; रे. चं. ; र. का धे. ; र. रा. सु. : (र. का. थे. । प्रमेह.) रसे. सा. सं. । अम्लपित्ता. वृ. यो. त. । त. मृतरसयुगभागौ हाटकं चन्द्रभाग १२२; रसे. चि. म. । अ. ९) वसुगुणितकपर्द टङ्कणं भागमेकम् । सितविषशशिभागं सर्वतुल्यं सुगन्धं रसो बलियोमरविस्तु लौह तिथिदिनमनलाद्भिर्वज्रदुग्वेन घृष्ट्वा ॥ धान्यक्षनीरैस्त्रिदिनं विमर्थ ।। तदनु च कृतगोलं पक्वभाण्डे स्थितं ततदल्पवृष्टं मृदुमार्कवेण गजपुटविधिसिद्धः पोटली लोकनाथः । सम्पर्दयेदस्य हि रक्तिमात्रम् ॥ घृतमरिचसमेतं वल्लमा प्रदद्याहन्त्यम्लपित्तं विविधपकारं द्विजयति भयदारी श्वासहारी त्रिरात्रात् ॥ लीलाविलासो रसराज एषः। मधुकणयुतमेनं भोजयेद्युक्तपथ्यं छदि सशूलां हृदयस्य दाह घृतपचितसुशाकं वर्जयेत्तैलम् । हरति सकलरोगान्सर्वमेहानिहन्यानिवारयेदेष न संशयोऽत्र ॥ जनयति बहुवीर्य कान्तिपुष्टिं करोति ॥ दुग्धं सकूष्माण्डरसं सधात्री पारद भस्म २ भाग, स्वर्ण भस्म १ भाग, फलं समेतं ससितं भजेद्वा ॥ | कौड़ी भस्म ८ भाग, सुहागेकी खील १ भाग, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, ताम्र शुद्ध सफेद विष ( संखिया ) १ भाग और शुद्ध भस्म और लोह भस्म समान भाग ले कर प्रथम | गन्धक १३ भाग ( सबके बराबर ) ले कर सबको पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें । एकत्र पीस कर १५-१५ दिन चीतेके काथ और अन्य औषधे मिला कर सबको आमले और थोहर (सेंड) के दूधमें खरल करके गोला बनावें बहेड़ेके रस या काथसे ३-३ दिन मर्दन करें | और उसे सुखा कर शराव सम्पुट में बन्द करके और फिर थोड़ी देर भंगरेके रसमें घोट कर १-१ | गजपुट में पकावें । एवं जब वह स्वांग शीतल हो रत्तीकी गोलियां बना लें। जाय तो निकाल कर पीस लें। ___ इनके सेवनसे विविध प्रकारके अग्लपित्त, मात्रा-३ रत्ती। छर्दि, शूल और हृदयकी दाहका नाश होता है। इसे काली मिर्चके चूर्णमें मिला कर घृतके दूधमें पेठे ( कुम्हड़े ) का रस, आमलेका | साथ सेवन करना चाहिये । चूर्ण और मिश्री मिला कर पीनेसे भी अम्लपित्त | इसके सेवनसे श्वास रोग ३ दिनमें ही नष्ट नष्ट होता है। | हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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