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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[लकारादि
तुगाजमोदाघनसारमभ्रक
जिह्वा शोधक है । इसके सेवनसे प्रमेह, खांसी, शृङ्गीषाग्रन्थिकमग्निमन्थिकम् । अरुचि, राजयक्ष्मा, पीनस, क्षय, अर्श, ग्रहणी, प्रियङ्गुमुस्तातिविषाशतावरी त्रिदोष, हिचकी, अतिसार, प्रदर, गलग्रह, पाण्डु
सत्वं गुडूच्यास्तृवृतादुरालभा ॥ स्वरभंग और अश्मरीका नाश होता है। समानि सर्वैश्च समा सिता भवेत्
(व्यवहारिक मात्रा-४-६ माशे) बृहल्लवंगादिरयं निगद्यते।
(६३५१) लवङ्गादिवटी (वृहत्) सायं प्रभे खादति कर्षसमितं
(रसे. सा. सं. । अग्निमान्धा.) भवन्ति देहे बलवीर्यपुष्टयः॥
लवङ्गजातीफलधान्यकुष्टं निहन्ति दीपयत्यनि तनुवर्णकरं परम् । जीरद्वयं त्र्यूषणत्रैफलश्च । वातघ्नं लोचनं हृद्यं कण्ठ जिहाविशोधनम्॥
एलात्वचं टङ्कवराटमुस्तं प्रमेहकासारुचियक्ष्मपीनसं
वचाजमोदा विडसैन्धवश्च ॥ क्षयार्शदाघाग्रहणीत्रिदोषनुत् । तदर्द्धकं पारदगन्धमभ्रं हिक्कातिसारमदरं गलग्रह
लौहश्च तुल्यं मुविचूर्ण्य सर्वम् । निहन्ति पाण्डस्वरभङ्गमश्मरीम् ।।
तन्नागवल्लीदलतोयपिष्टं लौंग, इलायची, दालचीनी, तेजपात, नीलो- ___ वल्लप्रमाणां वटिकाश्च कृत्वा । त्पल, खस, जटामांसी, तगर, सुगन्धबाला, कंकोल, प्रातर्विदध्यादपि चोष्णतोयेपीपल, अगर, नागकेसर, जायफल, सफेद चन्दन, रियं निहन्याद्ग्रहणीविकारम् । जावत्री, सफेद और काला जीरा, सोंठ, मिर्च,
आमानुबन्धं सरुजं प्रवाह पीपल, पोखरमूल, कचूर, हर्र, बहेड़ा, आमला, ज्वरं तथा श्लेष्मभवं सशूलम् ॥ कूठ, बायबिडंग, चीता, तालीसपत्र, देवदारु, कुष्ठाम्लपित्तं प्रबलं समीरं धनिया, अजवायन, मुलैठी, खैरसार, अम्लबेत, ___ मन्दानलं कोष्ठगतश्च वातम् । बसलोचन, अजमोद, कपूर, अभ्रक भस्म, काकड़ा- वटी लवङ्गाद्या वसुप्रणीता सिंगी, बासा, पीपलामूल, अरणी, फूल प्रियंगु, ___तथा सवातं विनिहन्ति शीघ्रम् ।। नागरमोथा, अतीस, शतावर, गिलोयका सत, लौंग, जायफल, धनिया, कूठ, सफेद जीरा, निसोत और धमासा समान भाग तथो मिश्री सबके | काला जीरा, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेडा, आबराबर ले कर यथाविधि चूर्ण बनावें ।
मला, इलायची, दालचीनी, सुहागेकी खोल, कौड़ी मात्रा--१। तोला
भस्म, नागरमोथा, बच, अजमोद, विडलवण और यह चूर्ण बलवीर्य वर्द्धक, पौष्टिक, अग्निदीपक, सेंधा नमकका चूर्ण १-१ भाग (२-२ तोले ) घातनाशक, नेत्रों के लिये हितकारी हृद्य, कण्ठ और तथा शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म और
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