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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[लकारादि
उसमें १ सेर शहद, १० तोले शिलाजीत, तथा । अपथ्य--इसके सेवन कालमें केला, कन्द, २॥-२॥ तोले इलायची और दारचीनीका चूर्ण, १ कांजी, करौंदा, करोर और करेला न खाना १० तोले बायबिडंगका चूर्ण, एवं १०-१० तोले । चाहिये । काली मिर्च, सुरमा, पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला
(६२६४) लोध्राद्यवलेहः और कसीसका चूर्ण मिला कर स्निग्ध पात्रमें भर कर सुरक्षित रक्खें ।
. (वृ. यो. त. । त. १४४ ) इसे शरीर शुद्धिके पश्चात् १। माशेकी मात्रा- लोधेन्द्रयवधान्याक धात्रीहीबेरमुस्तकम् । नुसार सेवन करना चाहिये।
मधुना लेहयेद्वालं ज्वरातीसारनाशनम् ॥ इसके सेवनसे वात, कफ, कुष्ठ, प्रमेह, ज्वर, लोध, इन्द्रयव, धनिया, आमला, सुगन्धबाला, कामला. पाण्डु, शोथ, भगन्दर, मूर्छा, मोह,
और नागरमोथा समान भाग ले कर चूर्ण बनावें विष, उन्माद, स्थूलता, मेद, और बलिपलितका
तथा उसे शहद में मिला लें। नाश होता है।
यह बल्य, रसायन, मेध्य और उत्तम वाजी- इसे चटानेसे बालकोंका ज्वरातिसार नष्ट करण है।
| होता है। इति लकाराबवलेहप्रकरणम् ॥
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अथ लकारादिघृतप्रकरणम् (६२६५) लघु अश्वगन्धावृतम् है । ( असगन्धका कल्क २० तोले, घी २ सेर, [लघुवाजिगन्धाचं घृतम् । दूध ८ सेर । मिसरी २ सेर) (यो. र. । वाजीकरणा.)
(६२६६) लघुकण्टकारीघृतम् कल्केन वाजिगन्धाया विपचेद् घृतमुत्तमम् । चतुर्गुणमजाक्षीरं दत्त्वोद्धत्याथ शीतले ॥
( वृ. मा. । कासा.) सितां समां प्रदायाधादलपुष्टिविवृद्धये ॥ । घृतं रास्नाबलाव्योषश्वदंष्ट्राकरकपाचितम् । ___ असगन्धके कल्क और चार गुने बकरीके कण्टकारीरसे पानात्पश्चकासनिषूदनम् ।। दूधके साथ धृत सिद्ध करें और फिर उसे ठण्डा | कल्क--रास्ना, खरैटी, सांठ, मिर्च, पीपल करके उसमें समान भाग मिसरी मिला लें। | और गोखरु ५-५ तोले ले कर सबको एकत्र
इसे सेवन करनेसे बल पुष्टिकी वृद्धि होती | पीस लें।
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