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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
४५७
षट्मस्थकोकिलैर्मातो विमळः शशिसन्निभम् । वर्जयेद्वर्षपर्यन्तं पनसं तुम्बिजं फलम् । सत्वं मुञ्चति तद्युक्तो रसः स्यात्स रसायनः।। अन्या च वटिका नास्ति पूतिमेहविनाशिनी ॥
सुहागे और मेढासिंगीकी भस्मको बढलके | समान भाग शुद्ध पारद और शुद्र चांदीका रसमें खरल करें और फिर उसके साथ माक्षिकको चूर्ण ले कर दोनोंको एकत्र मिला कर खरल करें। घोट कर मूषाके भीतर इसका लेप करदें तथा । जब दोनों मिल जायं तो सबका एक गोला बना सुखा कर उसका मुख बन्द करके उसे ६ सेर कर उसे शीशीमें भर कर रख दें । फिर २४ कोयलोंकी अग्निमें ध्मावें । इससे विमलका अत्यन्त घण्टे पश्चात् उसे लोहेकी कढाईमें डालकर चूल्हे स्वच्छ श्वेत चन्द्रमाके समान उज्ज्वल सत्व निकल पर चढ़ावें और उसके नीचे तीवाग्नि जलावें तथा आता है । यह सत्व रसायन होता है। उसको लोहेकी करछीसे चलाते रहें । जब चांदीकी (६१६७) रौप्यरसवटी
सफेद भस्म तैयार हो जाय तो आग देनी बन्द
करदें और कढ़ाईके स्वांगशीतल होने पर उसमेंसे (रूपरसवटिका.)
भस्मको निकाल लें। ( र. चं. । प्रमेहा.)
___ तदनन्तर यह चांदी भस्म १ निष्क (५ पारदं चन्द्रिकाचूर्ण समं शुद्ध विमर्दयेत् । । माशे ), केसर २ निष्क, तथा जावत्री, जायफल, गोलं कृत्वा च संस्थाप्य दिनमेक करण्डके | लौंग और संगजराहतका चूर्ण ११-१॥ तोला एवं द्वितीये दिवसेऽङ्गारे लोहपात्र विनिक्षिपेत् । नारियलकी गिरी और बीज रहित शुद्ध भिलावे लोहदण्डेन संघर्घ्य शुभ्रं भस्म च कारयेत् ॥ ५-५ तोले तथा इमलीके फलका गूदा २५ तोले तद्रौप्यभस्म निष्कैकं द्विनिष्कं कुङ्कमं शुभम् । | लेकर सबको एकत्र मिलाकर अच्छी तरह मर्दन जातिकोषफले चैव लवङ्गं शङ्खजीरकम् ॥ करके आधे आधे तोलेकी गोलियां बना लें । प्रति कर्प तथा नारिकेलमज्जा च भूपला । अनुपान--तिलका तेल या ताजा निकाला भल्लात्काच निर्बीजात्पलं ग्राह्य प्रयत्नतः॥ हुवा कुसुम्भ (कैड) का तेल, अथवा गायका दही तिन्तिडीफलमांसं च योजयेत्पलपञ्चकम् ।। या घी। विधिवत्सर्वमेकत्र मर्दयेत्सुदृढं भिषक् ॥
इसे प्रातः सायं सेवन करना चाहिये । दवा कोलमाना च वटिका तिलतैलेन योजयेत् । खानेके पश्चात् १॥ तोला आम या चिरौंजी किंवा कौसम्भलेन सद्यो निष्कासितेन वा॥ (प्रियाल) का रस पोना चाहिये । धेनुदध्नाऽथ वाऽऽज्येन सायं प्रातःप्रयोजयेत् ।। यह वटिका समस्त प्रमेहोंको और विशेषतः आम्रचाचारकरसं कर्ष चैवानु पाययेत् ॥ पूतिमेहको नष्ट करती है । वटिका रूपरसका सर्वमेहविनाशिनी।
पूतिमेह (सूजाक ) के लिये इससे उत्तम पूतिमेहं विशेषेण पथ्यं सामान्यमाचरेत् ॥ अन्य औषध नहीं है ।
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