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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः इसके सेवनसे प्लीहा, अग्रमांस और शोथ | स्वागशीतां च तां पिष्टी साम्लतालेन मर्दितम् ॥ अवश्य नष्ट हो जाता है। पुटेदशवाराणि भस्मी भवति रूप्यकम् ॥ (६१६१) रौद्ररसः शुद्ध पारदको बढलके रसमें घोट कर शुद्ध (रसे. सा. सं. ; र. चं. ; र. रा. सु. । अर्बुदा ; चांदीके बारीक पत्रों पर लेप कर दें और फिर उन धन्व. ; वृ. नि. र. ; र. का. धे. । अर्बुदा. पत्रोंके ऊपर नीचे शुद्ध गन्धकका चूर्ण बिछा कर रसे. चि. म. । अ. ९; र. म. । अ. ६) उन्हें शरावसम्पुटमें बन्द करें । तदनन्तर उस सम्पुटको बालुका यन्त्रमें रख कर १ दिन तीब्राग्नि शुद्धं मूतं समं गन्धं मध यामचतुष्टयम् । पर पकावें। नागवल्लीरसैयुक्तं मेघनादपुननेवैः ॥ ___ इसके पश्चात् जब वह स्वांगशीतल हो गोमूत्रपिप्पलीयुक्तं मी रुड्वा पुटेल्लघु ।। .. जाय तो उसमें से चांदीको निकाल कर उसमें लिह्यात्क्षाद्र ताराद्रा गुआमामा ९ जप" ( उसके बराबर ) शुद्ध हरताल मिलाकर दोनोंको - शुद्ध पारद और गन्धक समान भाग ले कर | नीबूके रसमें घोटें और शरावसम्पुटमें बन्द करके दोनोंकी कजली बनावें और फिर उसे पानके रस, | | गजपुटमें फूंक दें। चौलाई के रस, पुनर्नवा (बिस व परा ) के रस, इसी प्रकार १० पुट देनेसे चांदीकी भस्म गोमूत्र और पीपल के काश्रमें पृथक पृथक् चार चार | हो जाती है। पहर घोट कर गोला बनावें और उसे सुखाकर शगव-सम्पुट में बन्द करके लघुष्ट में पकावें । (६१६३) रौप्यभस्मविधिः (२) (यो. त. । त. १७) मात्रा-१ रत्ती। इसे शहद में मिलाकर चाटनेसे अर्बुद नष्ट | | विधाय पिष्टिं मूतस्य रजतस्याथ मेलयेत् । होता है। तालगन्धं समं पश्चात् मेलयेनिम्बुक द्रवैः ॥ द्विस्त्रिः पुटैर्भवेद्भस्म योज्यमेतद्रसादिषु ॥ रौद्रश्वररसः १ भाग शुद्ध पारदमें १ भाग शुद्ध चांदीके प्र. सं. ५५६८ " महारौद्रेश्वर रसः " वर्क मिला कर दोनोंको खरल करें । जब दोनोंकी देखिये । पिढीसी बन जाय तो उसमें १-१ भाग हरताल (६१६२) रौप्यभस्मविधिः (१) और गन्धक मिला कर सबको नीबूके रसमें घोटें (र. र. स. । पू. खं. अ. ५) और यथा-विधि सम्पुटमें बन्द करके गजपुलकुचद्रवमूताभ्यां तारपत्रं प्रलेपयेत् । टमें पकावें। ऊर्ध्वाधो गन्धकं दत्त्वा मूषामध्ये निरुध्य च ॥ इसी प्रकार २-३ पुट देनेसे चांदीकी भस्म स्वेदयेद्वालुका यन्त्रेण दिनमेकं दृढाग्निना। । हो जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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