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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि शीघ्र ही अग्नि दीप्त होती और संग्रहणी तथा आम-लीढं कासं ज्वरं श्वासं राजयक्ष्माणमेव च ॥ वातका नाश हो जाता है। | बलवर्णाग्निपुष्टि च वधनं दोषनाशनम् ॥ यह रस संग्रहणी रूपी कुम्भकर्ण, आमवात | रास्ना, कपूर, तालीस पत्र मण्डूकपर्णी, रूपी खरदूषण और अग्निमांद्य रूपी दशाननके शिलाजीत, सोंठ, मिर्च, पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला, लिये रामबाणके समान है। नागरमोथा, बायबिडंग और चीतेका चूर्ण १-१ (६१५०) रामरस: (श्रीरामरसः) भाग तथा लोह भस्म १४ भाग ले कर सबको ( भै. र. ; र. रा. सु. । ज्वरा.) एकत्र मिला कर खरल करें। गन्धकं पारदं तुल्यं मरिचं च त्रिभिः समम् । इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे बीजं नैकुम्भकं मद्य दन्तीक्वाथेन यामकम् ।। | | कास, ज्वर, श्वास और राजयक्ष्माका नाश होता द्विवल्लं शूलविष्टम्भानिलमामज्वरं जयेत् । | तथा बल वर्ण अग्नि और पुष्टिकी वृद्धि होती है। तथा श्री शिवेन स्वयं प्रोक्तं रसं श्रीराम सज्ञकम (६१५२) रुक्मिशरसः शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारद और काली मिर्चका ( रसे. सा. सं. । रेचना.) चूर्ण समान भाग तथा शुद्ध जमालगोटा ३ भाग अभयाचूर्णमादाय नूतनैर्जयपालकैः । लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और पश्चमांशेन मिलितैः स्नुहीदुग्धेन मर्दिताः॥ फिर उसमें अन्य औषधे मिला कर सबको १ पहर गुडिकास्तस्य कर्तव्या वर्तुलाश्चणकप्रभाः। दन्तीमूलके काथमें खरल करके १-१ रत्तीकी | एकैकस्यास्य टङ्कस्य रेचनैश्च रसैस्तदा ।। गोलियां बना लें। रुक्मिशो न च दाहः स्यान्न च मूर्छाभ्रमः। मात्रा-६ गोली। | वेगतः सारयेदेषा विशेषादामनाशिनी ॥ इसके सेवनसे शूल, विष्टम्भ, वायु और आम- | निरूहेन तथा नैव तथा विन्दुघृतेन च। ज्वर नष्ट होता है। त्रिता न तथा रेच्या यथा स्याद्गुडिकोत्तमा । (व्यवहारिक मात्रा---१ रत्ती । ) अतिशुद्धं भवेदेवमतिपबलमुत्तमम् । (६१५१) रास्नादिचूर्णम् अतिरूपमतिप्रौढमत्यायुष्करमुत्तमम् ॥ (रास्नादिलौहम् ) विष्टम्भे गुडिका देया चोदरे दारुणामये । अधोदेशेषु सर्वेषु गदेषु च महौषधिः ॥ ( वृ. नि. र. । क्षय. ; धन्व.; रसें. सा. सं. ; र. र. । रा. य. ; र. रा. सु. । क्षय.) दीयते क्षीयते सामः कामकायविवर्द्धनः ॥ रास्नाकप्रतालीसभेकपर्णीशिलाजतु । उत्तम हर्रका चूर्ण ५ भाग और शुद्ध नवीन त्रिकटुत्रिफलामुस्ताविडङ्गदहनाः समाः ॥ जमालगोटा १ भाग लेकर दोनोंको एकत्र मिला चतुर्दशायसो भागास्तच्चूर्ण मधुसर्पिपा। । १ पाठान्तरके अनुसार असगन्ध. For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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