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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थो भागः
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(६१३४) राजराजेश्वररसः । पलाशस्य च बीजानि भागवृद्धोत्तराणि च । ( रसे. सा. सं. । कुटा. ; र. रा. सु. ; र. का. स्नुहीक्षीरेण सम्पिष्य भावयेत् त्रिदिनं च तत् ॥ धे. । कुष्ठा. ; रसे. चि. म. । अ. ९.)
नारिकेलफले क्षिप्त्वा महागाढातपे स्थितम् । आतपे मर्दयेत्सतं गन्ध मृतताम्रकम् ।
ततस्तैलं तु जायेत गृहीत्वा नाभिमण्डले ॥ मुहस्तमर्दितं तालं यावत्तत्र विलीयते ॥
अणुमात्रं प्रलेपेन दशवारान् विरेचयेत् । भृङ्गराजद्रवं दत्वा दिनमात्रं विमईयेत ।
ततः शीतोदकेनैव शीघ्रं प्रक्षालयेद् बुधः ॥ त्रिफला खादिरं सारममृता वागुजीफलम् ॥ |
| गुटिकाऽऽघ्राणमात्रेण सप्तवारान् विरेचयेत् । प्रत्येकं मृततुल्यं स्याच्चूर्णीकृत्य विमईयेत् । ।
राज्ञे च दापयेदम्लमभ्यङ्गं च विवर्जयेत् ॥ मध्याज्याभ्यां लौहपात्रे कर्षाभ्यां भक्षयेत्ततः ॥ एतत्तैलेन पथ्यादिफलं युक्तिविभावितम् । दकिटिभकुष्ठानि मण्डलानि विनाशयेत् । निष्पीडय हस्ते विधृतं विरेचनकरं परम् ॥ द्विगुञ्जोपि निहन्त्याशु राजराजेश्वरो रसः॥ शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, __शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म और शुद्र जमालगोटा ७ भाग, सुहागा ५ भाग, शुद्ध हरताल १-१ भाग लेकर प्रथम पारे गन्ध- श्योनाकके बीज ६ भाग, अरण्डके बीज ७ भाग, ककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य |
अमलतासके बीज ८ भाग और पलाशके बीज ९ औषधे मिला कर सबको एक दिन भंगरेके रसमें |
भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें धूपमें बैठकर खरल करें और फिर उसमें १-१
और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर भाग हर, बहेड़ा, आमला, कत्था, गिलोय और सबको ३ दिन थोहरके दूधमें घोटें और फिर उसे बाबचीके बीजोंका चूर्ण मिलाकर एकत्र खरल
नारियल (गोले ) के भीतर भर कर उसे तेज़ करके रक्खें।
धूप में रक्खें । इससे उसमें से जो तेल निकले उसे मात्रा---२ रत्ती।
पृथक् कर लें और शेष किटकी बड़ी बड़ी गोलियां इसे २॥ तोले शहद और घीमें लोहपात्रमें बना लें। मिला कर खाना चाहिये।
इस तेलमेंसे जरासा नाभिमें लगा देने मात्रसें इसके सेवनसे दाद, किटिभ कुष्ठ और मण्डल
१० बार विरेचन होता है । विरेचन होनेके बाद
तेलको तुरन्त ठण्डे पानीसे.धो डालना चाहिये। कुष्ठका नाश होता है।
उपरोक्त गोलीको सूंघने मात्रसे ही सात (६१३५) राजवल्लभगुटिका.
दस्त आ जाते हैं। (र. का. धे. । आनाह.) ___ इस तैलसे हर्र आदिके फलेको भावित करके सूतगन्धकजैपालदन्तीबोजानि टङ्कणम् । | रख लेना चाहिये । इस प्रकारकी हर्र आदिको श्योनाकैरण्डबीजानि राजाभवानि च ॥ । हाथ पर रखनेसे ही विरेचन हो जाता है।
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