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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ४४१ - पारद भस्म ३ भाग, स्वर्ण भस्म १ भाग, । जातीसस्यवलाचतुष्टयजलत्वरदेवपुष्पद्रवैः ।। ताम्र भस्म १ भाग तथा शुद्ध मंसिल, हरताल और ककोलैर्मदनागकेसरजलैर्भाव्यं पृथक्सप्तथा । गन्धक २-२ भाग ले कर सबको एकत्र खरल | भाण्डे सिन्धुभृते मृगाङ्कवदयं पाच्यः क्रमानो करके कौड़ीमें भर दें और फिर सुहागेको बकरीके दिनम् दूधमें घोट कर उससे कौड़ी के मुखको बन्द करके | भूयः प्राक्समुदाहतैश्ववयैस्तं भावयत्पूर्ववत । सुखा कर उसे शराव-सम्पुटमें बन्द करें और उसे पश्चात्तुल्यविभागशीतलरजः कस्तूरिकासुखा कर गजपुट में क दें। भावना ॥ मात्रा-१ रत्तीसे २ रत्ती तक। | गोप्याद्गोप्यतरं रसायनमिदं श्री शङ्करेअनुपान--पीपल और काली मिर्चका चूर्ण णोदितम् । | गुआसिन्धुयुतं कणामधुयुतं शोफे सपाण्ड्वामये ॥ तथा शहद और धी। वातव्याधिमुपद्रवैश्च सहितं मेहांस्तथा विंशतिम् । इसके सेवनसे हर प्रकारका क्षय नष्ट | संयोज्यं च हरीतकी गुडयुतं वातास्रके दुर्जये ॥ होता है। | गम्भीरे च गुडूचिसत्वचपलाक्षौद्रैस्तु संयोजित(६१३३) राजमृगाङ्करसः (४) स्त्वामानाचिशूलमान्धकसनापस्मारवातो( नवरत्नराजमृगाङ्कः ) दरान् ॥ ( यो. र., र. रा. सु. । यक्ष्मा.) श्वासान्सङ्ग्रहणी हलीमकमथो सर्वज्वरान्नामूतं गन्धकहेमताररसकं वैक्रान्तकान्तायसम् । शयेत् । वङ्गं नागपबिवालविमलामाणिक्य- धातून्पोषयति क्षयं क्षपयति श्यामाशतं यौवनम् ॥ गारुत्मतम् ।। | प्रौढाटोपयुतं करोति सहसा तारुण्यगर्वोज्झितम् । ताप्यं मौक्तिकपुष्परागजलजं वैडूर्यकं सिद्धो राजमृगाङ्क एष जयति स्वस्थानुपामैशुल्वकम् । गंदान् ॥ शुक्तिस्तालकमभ्रहिङ्गुलशिला गोमेदनीलं ___ शुद्ध पारद, शुद गन्धक, स्वर्ण भस्म, चांदी समम् ॥ भस्म, ख परिया, वैकान्त भस्म, कान्त लोह भस्म, गोक्षुरैः फणिवल्लिसिंहवदना मुण्डीकणा- बंग भस्म, सोसा भस्म, हीरा भस्म, प्रवाल भस्म, चित्रकै- | विमल ( स्वर्ण-माक्षिक भेद ) भस्म, माणिक्य रिक्षुच्छिन्नरुहाहरप्रियजयाद्राक्षा- भस्म, मरकत मगि भस्म ( पन्ना भस्म ), स्वर्ण वरीजद्रवैः ॥ | माक्षिक भस्म, मोती भस्म, पुखराज भस्म, शंख शोफनीशतपत्रिकामधुजलैः सच्छाल्मली भस्म, वैडूर्य मणि भस्म, ताम्र भस्म, शुक्ति भस्म, धातकी। | शुद्ध हरताल, अभ्रक भस्म, शुद्र हिंगुल, शुद्ध मन For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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