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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि चर्मकीलं महाद नाशयेन्नात्र संशयः। (६११३) रसाभ्रगुटिका वातरक्तविनाशाय धन्वन्तरिकृतः पुरा ॥ (र. र.; धन्व. । रसायना.) रसाभ्रगुग्गुलुः ख्यातो वातरक्तेऽमृतोपमः॥ सहदेवी बला चैव सूर्यावर्तोऽथ मारिषः। ___ शुद्ध पारद, लोह भस्म और शुद्ध गन्धक अपामार्गोऽमृता चैव सम्यक् सम्पादयेद भिषक् २॥-२॥ तोले; अभ्रक भस्म ५ तोले; शुद्ध एषां पलानि चत्वारि प्रत्येक कुट्टयेत्ततः । गूगल ४० तोले तथा गिलोयका रस या काथ २ | अत ऊर्व च तद्दत्त्वा मण्डूरं यत्पुरातनम् ॥ सेर और त्रिफलाका काथ २ सेर लेकर प्रथम पारे गोमूत्रेण पचेतावद् यावद् गोमूत्रशोषणम् । गन्धककी कज्जली बनावें और फिर समस्त द्रव्यों | तस्मादुद्धत्य तच्चूर्ण कुर्यात्पलचतुष्टयम् ॥ को एकत्र मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब | त्रिकटु रिफला मुस्तगुडूची चित्रकं त्रिवृत् । पाक लगभग तैयार हो जाय तो उसमें निम्न | दन्ति विडङ्गमेकैकं कर्षमेषां तु चूर्णयेत् ॥ लिखित द्रव्यांका चूर्ण मिला कर सबको एक जीव | एकपत्रीकृतस्याथ वचकाभ्रस्य यत्पलम् । करके सुरक्षित रक्खें। | वार्यन्नाम्भस्त्रिरात्रस्थं वारिपर्णीरसाप्लुतम् ।। पूर्ण द्रव्य-सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेडा, आतपे शोषयेत्तीक्ष्णे दिनमेकं सुरक्षया । आमला, दन्तीमूल, गिलोय, इन्द्रायणकी जड़, | सूरणस्य रसैः पिष्ट्वा तत्र टणकस्य च ॥ बायबिडंग, नागकेसर और निसोत; इनका चूर्ण | दत्त्वाष्टौ माषकांस्तत्र पुटपाकेन पाचयेत् । ११-१। तोला लेकर सबको एकत्र मिला लें। मृण्मये सुदृढे पात्रे मृदुना गोमयामिना ॥ मात्रा--१ माषा । रसावादशमाषाश्च कर्ष गन्धकतः पृथक् । रसे मण्डूकपर्याश्च मूछितौ कज्जलीकृतौ ॥ अनुपान--गिलोयका काथ । घृतस्य मधुनश्चापि पृथक् पलचतुष्टयम् । इसके सेवनसे गलित और स्फुटित भयंकर तत्सर्वमेकतः कृत्वा स्निग्धे भाण्डे निधापयेत् ॥ वातरक्त, अठारह प्रकारके कुष्ठ, कृमिरोग, अश्मरी, ततोऽष्टौ माषकान् खादेदथवा द्वादशैव च । भगन्दर, गुदभ्रंश, श्वेत कुष्ठ, कामला, अपची, कर्ष वापि तथा कुर्यात् बुद्ध्वा दोषबलाबलम् ॥ गण्डमाला, पामा, कण्डु (खाज), विचर्चिका, चर्म दुग्धं चापि पिबेद्रोगी वह्नौ मन्दभवे ततः । कील और महा दद्रुका नाश होता है। तप्तोदकानुपानं च सेवेच्च ग्रहणीगदे ॥ यह प्रयोग वातरक्तके लिये तो अमृतके | अजाक्षीरानुपानं च श्वासकासे प्रयोजयेत् ॥ समान गुणकारी है। (१) सहदेवी, बला (खरैटी), सूर्यावर्त (हुल ( काथार्थ---गिलोय १ सेर, पानी ८ सेर, हुल), मरसा, अपामार्ग और गिलोय २०-२० शेष काथ २ सेर । त्रिफला १ सेर, पानी ८ सेर, तोले तथा गोमूत्रमें पकाया हुवा पुराने मण्डूरका शेष काथ २ सेर।) चूर्ण २० तोले एवं सांठ, मिर्च, पीपल, हरे, For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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