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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि - निःसृत्य वटिकाभ्यऽसौ भवत्यतिसितप्रभः ॥ (६०७८) रसभस्मविधिः (७) अयं मूलिकया बद्धो पारदो मुखरोगहृत् ।। __ (र. चि. म. । स्तवक १) ? भाग सुहागे और २ भाग पारदको एकत्र नागार्जुनीति विख्याता दुग्धिका क्षितिमण्डले । मिला कर पांच दिन तक नींबू और मत्स्याक्षी । तया विमर्दयेत्मतं दिनमेकं निरन्तरम् ॥ (मछेछी) के एकत्र मिश्रित रससे खरल करें और | कामाच्या च कर्तव्य मर्दनं दोषनाशनम् । फिर उसकी उड़दके समान गोलियां बना कर पारदं दशटडू स्याद्दशटडू च गन्धकम् ॥ सुखा लें। नौसादरं च सारं स्यात्त्रयमेकत्र मर्दयेत् । तदनन्तर इन गोलियोंको लकड़ीकी पिटारी | काचस्य कूपिके धृत्वा मुखं तस्य निरोधयेत् ॥ (डिबिया ) में बन्द करके उस पर पानीमें भीगा | अष्टयामाऽवधिर्यावत्तावत्सूतः पाच्यते । हुवा उड़दका आटा लपेट दें और फिर उस पर एवं निष्पद्यते सम्यकभस्मबालार्कसन्निभम् ॥ ईटके चूर्णका लेप करके तेज धूप में सुखा लें। तत्सूतभस्म सझं हि सर्वकार्यार्थसाधकम् । अब इस पिटारीको मूषामें रख कर उसे | प्रवालकोमलच्छायं भूपतीनां हि वल्लभम् ॥ कोयलों पर रक्खें और धीर धीर ध्मा । भक्षयेद्रक्तिकाः पश्च समानमरिचैः सह । क्षुधोदयकरं प्रायः श्रेष्ठं कामाग्निदीपने ॥ इस क्रियासे पारद भस्म हो कर गोलियोंके | जराद्यान्सकलान्दोषान्योगभेदेन नाशयेद् । भीतरसे बाहर आ जायगा । उसका रंग अत्यन्त | येषु येषु च रोगेषु प्रयुक्तोऽयं रसोत्तमः ॥ सफेद होगा। तान्सर्वान्नाशयेत्सद्यः समर्थो रसपार्थिवः ॥ यह मूलिका-बद्ध पारद मुखरोगांको नष्ट ___ शुद्ध पारदको एक दिन नागार्जुनी ( दुद्धी करता है। भेद ) के स्वरसमें और १ दिन मकोयके स्व रसमें खरल करें । तदनन्तर ५० माशे यह पारद, (६०७७) रसभस्मविधिः (६) ५० माशे शुद् गन्धक और ५० माशे नौसादरका (र. चि. म. । स्तबक १) फूल लेकर तीनोंको एकत्र खरल करें और फिर विष्णुक्रान्तामपामार्गमहिफेनेन्द्रवारुणी। उसे कपड़मिट्टी की हुई आतशी शोशीमें भर कर सर्वेषां च रसै: पिटो म्रियते सूतकः पुटात् ॥ उसका मुख बन्द कर दें। ___ शुद्ध पारदको विष्णुक्रान्ता (कोयल), अपा ____ अब इस शीशीको (बालुको यन्त्रमें रखकर) आठ पहरकी मार्ग ( चिरचिटा), अफोम और इन्द्रायणके रसमें घोट घोट कर पुट देनेसे उसकी भस्म हो जाती है। इस विधिसे पारदको बालसूर्यके समान For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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