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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[रकारादि
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निःसृत्य वटिकाभ्यऽसौ भवत्यतिसितप्रभः ॥ (६०७८) रसभस्मविधिः (७) अयं मूलिकया बद्धो पारदो मुखरोगहृत् ।। __ (र. चि. म. । स्तवक १)
? भाग सुहागे और २ भाग पारदको एकत्र नागार्जुनीति विख्याता दुग्धिका क्षितिमण्डले । मिला कर पांच दिन तक नींबू और मत्स्याक्षी । तया विमर्दयेत्मतं दिनमेकं निरन्तरम् ॥ (मछेछी) के एकत्र मिश्रित रससे खरल करें और | कामाच्या च कर्तव्य मर्दनं दोषनाशनम् । फिर उसकी उड़दके समान गोलियां बना कर पारदं दशटडू स्याद्दशटडू च गन्धकम् ॥ सुखा लें।
नौसादरं च सारं स्यात्त्रयमेकत्र मर्दयेत् । तदनन्तर इन गोलियोंको लकड़ीकी पिटारी | काचस्य कूपिके धृत्वा मुखं तस्य निरोधयेत् ॥ (डिबिया ) में बन्द करके उस पर पानीमें भीगा | अष्टयामाऽवधिर्यावत्तावत्सूतः पाच्यते । हुवा उड़दका आटा लपेट दें और फिर उस पर एवं निष्पद्यते सम्यकभस्मबालार्कसन्निभम् ॥ ईटके चूर्णका लेप करके तेज धूप में सुखा लें। तत्सूतभस्म सझं हि सर्वकार्यार्थसाधकम् । अब इस पिटारीको मूषामें रख कर उसे
| प्रवालकोमलच्छायं भूपतीनां हि वल्लभम् ॥ कोयलों पर रक्खें और धीर धीर ध्मा ।
भक्षयेद्रक्तिकाः पश्च समानमरिचैः सह ।
क्षुधोदयकरं प्रायः श्रेष्ठं कामाग्निदीपने ॥ इस क्रियासे पारद भस्म हो कर गोलियोंके |
जराद्यान्सकलान्दोषान्योगभेदेन नाशयेद् । भीतरसे बाहर आ जायगा । उसका रंग अत्यन्त | येषु येषु च रोगेषु प्रयुक्तोऽयं रसोत्तमः ॥ सफेद होगा।
तान्सर्वान्नाशयेत्सद्यः समर्थो रसपार्थिवः ॥ यह मूलिका-बद्ध पारद मुखरोगांको नष्ट ___ शुद्ध पारदको एक दिन नागार्जुनी ( दुद्धी करता है।
भेद ) के स्वरसमें और १ दिन मकोयके स्व
रसमें खरल करें । तदनन्तर ५० माशे यह पारद, (६०७७) रसभस्मविधिः (६)
५० माशे शुद् गन्धक और ५० माशे नौसादरका (र. चि. म. । स्तबक १) फूल लेकर तीनोंको एकत्र खरल करें और फिर विष्णुक्रान्तामपामार्गमहिफेनेन्द्रवारुणी।
उसे कपड़मिट्टी की हुई आतशी शोशीमें भर कर सर्वेषां च रसै: पिटो म्रियते सूतकः पुटात् ॥
उसका मुख बन्द कर दें। ___ शुद्ध पारदको विष्णुक्रान्ता (कोयल), अपा
____ अब इस शीशीको (बालुको यन्त्रमें रखकर)
आठ पहरकी मार्ग ( चिरचिटा), अफोम और इन्द्रायणके रसमें घोट घोट कर पुट देनेसे उसकी भस्म हो जाती है। इस विधिसे पारदको बालसूर्यके समान
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