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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०२ www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः अनुपान तोदर में जीरा २ रत्ती तथा हींग १ रत्ती । जब पर्पटी का सेवन जीरा और हिंगुके साथ करते हैं तब साथ ही जल भी पीना चाहिये । परन्तु साधारण नियम यह है कि रसपर्पटिका के बाद ही जलपान न करना चाहिये । मात्रा - दो रत्ती से प्रारम्भ करके क्रमशः प्रतिदिन एक २ रत्ती बढ़ाकर दस रत्ती तक सेवन करावें और फिर प्रतिदिन १-१ रत्ती कम करें। रसपर्पटिका में पथ्यापथ्यः रस पर्पटीके सेवन कालमें वायु सेवन, आतप सेवन, क्रोध, चिन्ता, अकाल में भोजन करना, व्यायाम, अत्यन्त परिश्रम, स्नान, तथा व्याख्यान ( अधिक बोलना ) न करना चाहिये । घृत, जीरा, धनियां, सैन्धव आदि द्वारा पकाये हुए व्यञ्जनादि, शालि चावल, काला बैंगन, अविद्धकर्णा (पाठ), वास्तुक (बथुआ), मूंग, पटोल फल, पटोल पत्र, सुपारी, अदरख, शाकों में मकोय, जलसे सिद्ध दुग्ध, पका हुआ केला आदि पथ्य हैं । [ रकारादि भूख लगे तब उस समय भी आहारार्थं सम परिमाण जलसे पक दुग्ध अथवा अधिक परिमाण जलसे सिद्धदुग्धका अवश्य पान करना चाहिये । यदि कदाचित भोजनके समयका व्यतिक्रम हो जाय तब, एवं ज्वर, वमन तथा अतिसार में नारियलके जल का तथा दुग्धका पान करना चाहिये । यदि कदाचित स्वप्न में वीर्यस्राव हो तो उस पर दुग्धपान कराना उचित है। भूख है कि नहीं ? यदि ये बोध न हो, निर्बलता, शरीर में झिनिझिनि के समान बोध हो तथा शिरोवेदना आदि हो तो भी दुग्धपान कराना चाहिये । अधिक क्या कहना जब २ भूख लगे तथा आवश्यक्तानुसार दुग्धपान ही उचित है। अपथ्य -- कच्चा केला, केले के पत्ते, मूल तथा वल्कल, निम्ब आदि तिक्त पदार्थ, उष्ण अन्न, आनूपमांस, जलचर पक्षियों का मांस, मैथुन, कृष्ण वर्णकी मछलियों में गडकमत्स्य, अम्ल दधि, शाक, गुड़, खांड, शर्करा तथा अन्य इक्षु विकार, गन्ना, करेला आदि। इसके व्यवहार काल में स्त्रियोंसे सम्भाषण भी न करना चाहिये । पथ्य के साथ किञ्चित् घृतका सेवन करें । जब भूख लगे तभी भोजन कर लेना चाहिये । अर्द्ध रात्रिमें भी यदि । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसके सेवन कालमें जो २ नियम बताये गये हैं उन्हें पालन न करनेसे तथा अविहित ( निषिद्ध) आहार विहार करनेसे कई प्रकार के उपद्रव हो जाते हैं अतः भोजनादि में सर्वदा सावधान रहना चाहिये । इस प्रकार विधिपूर्वक सेवन करने से यह ग्रहणीमें अत्यन्त फलप्रद है । इस रसपर्पटीके सेवन करनेसे अर्श, ग्रहणी, शूल, अतीसार, कामला, पाण्डु, प्लीहा, गुल्म, जलोदर, भस्मक, आमवात, कुठ तथा शोथ आदि रोग नष्ट होते हैं । यह अम्लपित्तको शान्त करती है, प्रवृद्ध वात, पित्त तथा कफका दमन करती है, क्षुधाको बढ़ाती है तथा अग्निको प्रदीप्त करती है । यह रसपर्पटी व्याधि समूहको नष्ट कर रसायन के समान प्रभाव दिखलाती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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