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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[रकारादि
अथ रकारादिनस्यप्रकरणम् (६०२२) रक्तकरवीरयोगः कूठ; इनका चूर्ण समान भाग लेकर सबको बकरेके ( यो. र. । नासा.)
मूत्रमें खरल करें। रक्तकरवीरपुष्पं जात्यं वा तथा मल्लिकायाः। ___ इसको नस्य देनेसे तन्द्रा नष्ट होती है। एतैः समं तिलतैलं नासार्शी नाशनं परम् ॥ (६०२५) रेचनसज्ञकनस्यम् (२) ___लाल करवीर (कनेर) के फूल, जातिके फूल (शा. सं.। खं. ३ अ. ८)
और मल्लिका के फूल समान भाग लेकर उन्हें | मधूकसारकृष्णाभ्यां बचामरिचसैन्धवैः। सबके बराबर तिल तैलमें घोट लें । ( अथवा इनके | नस्य कोष्णजले पिष्टं दद्यात्सद्भाप्रबोधनम् ॥ कल्कसे तैल सिद्ध करें।)
अपस्मारे तथोन्मादे सन्निपातेऽपतन्त्रके ॥ इसकी नस्य लेनेसे नासार्श नष्ट होती है। ___महुवेका सार, पीपल, बच, काली मिर्च और (६०२३) रक्ताम्रस्वरसादियोगः सेंधा नमक; इनका चूर्ण समान भाग लेकर सबको (यो. र. । नासा.)
एकत्र मिला कर खरल करें। रक्ताम्रस्वरसः शुद्धस्तक्रेण सह नस्यतः। ___इसे मन्दोष्ण जलमें पीसकर नस्य देनेसे तस्य पर्णानि पिष्टा च बनीयान्नासिकामुखे ॥ अपस्मार, उन्माद, सन्निपात और अपतन्त्रककी पतन्ति कीटकाः सद्यो योगोऽयं त्रिदिनैर्हितः। बेहोशी दूर हो जाती है। पीनसान्मुच्यते रोगी शतशोऽनुमितं त्विदम्॥ (६०२६) रेचनसम्ज्ञकनस्यम् (३) ___कोशाम्र ( वनाम्र-कोशंभ ) के स्वरसको | (शा. सं. । खं. ३ अ. ८) छानकर तक्रमें मिलाकर उसकी नस्य लेने तथा | नस्यं स्याद गुडशुण्ठीभ्यां पिप्पलीसैन्धवेन च। उसीके पत्तोंको पीसकर नासिकाके मुख पर बांध- जलपिष्टेन तेनाक्षिकर्णनासाशिरोगदाः॥ नेसे नासिकासे कृमि निकल कर ३ दिनमें पीनस हनुमन्यागलोद्भूता नश्यन्ति भुजपृष्ठजाः ॥ नष्ट हो जाती है।
___ गुड़ और सेठिके चूर्णको एकत्र मिलाकर यह प्रयोग शतशोऽनुभूत है।
उसकी अथवा पीपल और सेंधा नमकके समान (६०२४) रेचनस कनस्यम् (१) भाग-मिश्रित चूर्णकी नस्य लेनेसे नेत्र, कर्ण, नासा,
(शा. स.। ख. ३ अ. ८ ) | शिर, हनु, मन्या, गला, भुजा और पीठके रोग सन्धवं श्वेतमरिचं सर्षपाः कुष्ठमेव च । नष्ट होते हैं। बस्तमूत्रेण पिष्टानि नस्यं तन्द्रानिवारणम् ॥ उपरोक्त चूर्णीको पानीमें पीस कर नस्य सेंधा नमक, सहजनेके बीज, सरसों और । देनी चाहिये ।
इति रकारादिनस्यप्रकरणम्
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