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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसवप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः (५९७२) रोहीतकासवः (२) क्षेप्यं गुडस्य द्विशतं पलाना(गदनिग्रह) ___ मष्टादश स्युस्त्रिफला पलानि ॥ रोहीतकशतमेकं क्वथितं द्रोणे चतुर्थशेषे तु। लवङ्गजातीफलधातकीनां तस्मिन्गुडशतमेकं योज्यं शेषैः सचूर्णितैरेभिः । पलानि लोहस्य षडेव दद्यात् । पलमेकं त्रिफलाया देयं त्रिपलश्च धातकीपुष्पात् देयं चतुर्जातकपञ्चकोलं पलिकञ्च पञ्चकोलाद घृतभाण्डे स्थापयेत् पक्षम्।। पृथक् पृथक् पश्चपलं तथैव ॥ ज्वरगुल्मार्शःप्लीहरुगस्थिग्रहपाण्डुरोगनः॥ । गुल्मज्वरारोचकहृद्विकार६। सेर रुहेड़ेकी छालको ३२ सेर पानीमें भगन्दरप्लीहनिपीडितानाम् । पकावें और ८ सेर पानी शेष रहने पर छान लें। रक्तामयश्वासनीपोडितानां तदनन्तर उसमें ६। सेर गुड़, ५-५ तोले सदासवोऽयं विधिनाप्रयोज्यः । हर, बहेड़े और आमलेका चूर्ण, १५ तोले धायके १२॥ सेर रुहेड़ेको छालको ६४ सेर पानीमें फूलोंका चूर्ण, और ५-५ तोले पीपल, पीपलामूल, पकावें और १६ सेर पानी शेष रहने पर छान लें। चव, चीतामूल और सेठिका चूर्ण मिलाकर सबको तदनन्तर उसमें १२॥ सेर गुड़; ६-६ पल घृतसे चिकने मिट्टीके पात्रमें भरकर उसफा मुख ( ३०-३० तोले ) हर्र, बहेड़ा, आमला, लौंग, जायफल, धायके फूल और लोहका चूर्ण तथा बन्द कर दें और १५ दिन पश्चात् छान लें। २५-२५ तोले दालचीनी, तेजपात, इलायची, इसके सेवनसे ज्वर, गुल्म, अर्श, प्लीहा, नागकेसर, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता और अस्थिग्रह और पाण्डु रोग नष्ट होता है। सेोठका चूर्ण मिला कर सबको घृतसे चिकने मि( मात्रा--२ तोले ।) ट्टीके पात्रमें भर कर उसका मुख बन्द कर दें। (५९७३) रोहीतकासवः (३) (और १५ दिन पश्चात् छान लें।) ( गदनिग्रह) इसके सेवनसे गुल्म, ज्वर, अरुचि, हृद्विकार, तुलाद्वयं रोहितमूलकानां भगन्दर, तिल्ली, रक्तदोष, और श्वास नष्ट होता है । द्विद्रोणमात्रेण जलेन पक्त्वा । | ( मात्रा-२ तोले ।) इति रकाराबासवारिष्टप्रकरणम् - * - - For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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