________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
घृनप्रकरणम् ]
www.kobatirth.org
चतुर्थी भागः
अथ रकारादिघृतप्रकरणम्
(५९३९) रजनीत्रिफलाघृतम्
(व. से. । पाण्डु. )
रजनीक्वाथकल्काभ्यां घृतं पाण्डामयापहम् । त्रिफला कल्कगोमूत्र सिद्धं वा माहिषं घृतम् ॥ हल्दी के काथ और कल्कसे घृत सिद्ध करके
रक्खें ।
यह घृत पाण्डुको नष्ट करता है ।
( काथार्थ --- हल्दी १ सेर, पाकार्थ जल ८ सेर । शेष काथ २ सेर ।
कल्कार्थ – हल्दी चूर्ण १० तोले । घी ४० तोले । )
त्रिफलाके कल्क और गोमूत्र के साथ सिद्ध किया हुवा भैंसका घी भी पाण्डुको नष्ट करता है। ( त्रिफलाका कल्क २० तोले । भैंसका घी २ सेर । गोमूत्र ८ सेर | )
(५९४०) रसोनाद्यं घृतम् (च. द. । गुल्मा. २९ ) रसोनवरसे सर्पिः पञ्चमूलरसान्वितम् । सुरारनालद्ध्यम्लमूलकस्त्ररसैः सह || व्योषदाडिमवृक्षाम्लयमानीचन्यसैन्धवैः । हिग्वम्लवेतसाजाजी दीप्यकैश्च पलान्वितैः सिद्धं गुल्मग्रहण्यर्शः श्वासोन्मादक्षयज्वरान् । कासाsपस्मार मन्दाग्निप्लीहशूला निलाञ्जयेत् ॥
कल्क-सांठ, मिर्च, पीपल, अनार दाना, तिन्तड़ीक, अजवायन, चव, सेंधा नमक, होंग,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५१
अम्लबेत, जीरा और अजवायन प्रत्येक ५-५ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें ।
द्रव पदार्थ --- ल्हसनका स्वरस ६ सेर, बृहत्पञ्चमूलका काथ ६ सेर ( पञ्च मूल ३ सेर, पानी २४ सेर, शेष ६ सेरे), सुरा ६ सेर, आरनाल ( कांजी) ६ सेर, खट्टी दही ६ सेर और मूलीका स्वरस ६ सेर |
विधि-- ६ सेर घीमें उपरोक्त कल्क और समस्त द्रव पदार्थ मिला कर पकावें । जब द्रवांश जल जाए तो घीको छान लें।
इसके सेवन से गुल्म, ग्रहणी, अर्श, श्वास, उन्माद, क्षय, ज्वर, खांसी, अपस्मार, अग्निमांद्य, प्लीहा, शूल और वायुका नाश होता है ।
(५९४१) रास्नादिघृतम् (१)
( व. से. । वातव्या . ) रास्नापुष्करविल्वाग्निशिग्रुसैन्धवगोक्षुरैः । कृष्णां पिष्ट्वा पचेत्सर्पिः कृत्स्नं वातार्तिनाशनम्
रास्ना, पोखरमूल, बेलकी छाल, अरनी, सहजनेकी छाल, सेंधा नमक, गोखरु और पीपल के ककके साथ घी पका कर रक्खें ।
इसके सेवन से समस्त वातज रोग नष्ट होते हैं ।
For Private And Personal Use Only
( प्रत्येक वस्तु ५ तोले । घी ४ सेर । पानी १६ सेर | )