SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि इसके सेवन कालमें क्षार, अम्ल, और राई, क्षीरविदारी, पीपल, ल्हसन, काली दहीसे परहेज़ करना तथा उत्तम पौष्टिक आहार | मिर्च, अतीस और लौंगका चूर्ण समान भाग लेकर करना चाहिये। सबको एकत्र मिला कर भंगरे, आक, घीकुमार, इस प्रयोगसे स्वल्प वीर्यत्व और नपुंस्कता | संभालु, गोरख मुण्डी और चीतेके रसकी एक इस प्रकार नष्ट हो जाती है जिस प्रकार अग्निसे | एक भावना देकर (४-४ रत्तीकी ) गोलियां शीत । बना लें। इसके अतिरिक्त यह प्रयोग अतिसार, प्रमेह, . इनके सेवनसे श्वास और खांसीका नाश मन्दाग्नि, राजयक्ष्मा, आमवात, पाण्डु रोग, शिरो | होता है। रोग, प्लीहा, जल विकार और सींग वातको भी रुजादलनवटी नष्ट करता है। (र. रा. सु. । प्रमेह ; रसें. चि. म. । अ. ९) राजवल्लभगुटिका रस प्रकरणमें देखिये । (र. का. धे. । आनाह.) रुद्रवटी रस प्रकरणमें देखिये। (र. का. धे. । कुष्ठा.) राजशेखरवटी रस प्रकरणमें देखिये। (र. का. धे.। पाण्डु; र. चि. म. । स्त. ९) (५९३०) रेचनीवटी रस प्रकरणमें देखिये। ( रस. चि. म. । स्तबक ९) राजशेखरवटी | अभया चूर्णमादाय नूतनैर्जयपालकैः । (र. च. ; र. रा. सु. । अजीर्णा. ; र. र. पश्चमांशैश्च मिलितैः स्नुहोदुग्वेन पाचितम् ॥ स.। अ. १८) गुटिकास्तस्य कल्कस्य कर्तव्याष्टङ्कसम्मिताः । रस प्रकरणमें देखिये । गोल्यैकया गुणः प्रोक्तो रेचने उत्तमः खलु ॥ (५९२९) राजिकादिगुटी नोक्लेदो न च राहः स्यान्न च मूर्छा न च (व. नि. र. । श्वास कर्म.) क्लमः। राजिका क्षीरकन्दश्च चपला च रसोनकम् । वेगतः सारयत्येषा विशेषादामनाशिनी ॥ ऊषणातिविषा देवकुसुमं च विचूर्णितम् ॥ ५ भाग हरके चूर्णमें १ भाग शुद्ध जमालमार्कवार्ककुमारीभिर्निर्गुण्डीमुण्डीचित्रकैः। गोटा मिला कर दोनोंको स्नुही (सेहुंड) के दूधमें भावयित्वा पृथक् सर्वैः श्वासकासनिकृन्तनम्॥ पका कर ४--४ माशेको गोलियां बना लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy