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इसे पोखरमूलके तेल के ८० प्रकारके वातरोग नष्ट होते हैं ।
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
रकारादि
साथ सेवन करनेसे अश्वगन्धाऽमृता पाठा मुस्तेला शालिपर्णिका । शतपुष्पाsजमोदा च शुण्ठी कुष्ठं समांशतः ॥ सघृतं चूर्णमेतेषां भक्षितं तप्तवारिणा । त्वगस्थिस्नायु सन्धिस्थं मारुतं हन्ति वेगतः ||
(५९१६) रास्नाद्यं चूर्णम् (१) ( ग. नि. । राजयक्ष्मा. ९ ) रास्नामुस्तमुशीरं पद्मकलवङ्गान्यश्वगन्धा सिता भाग सत्रिफला कटुत्रययुता तद्वद्विडङ्गानि च। एलापत्रक नागकेसर महद्दान्विता पिप्पलीमूलं सद्विगुणा सिता च हरते सश्वासका सं क्षयम् ॥ रास्ना, नागरमोथा, खस, पद्माक, लौंग, असगन्ध, मिश्री, भरंगी, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल, बायबिडंग, इलायची, तेजपात, नागकेसर, देवदारु और पीपलामूलका चूर्ण १-१ भाग तथा मिश्री सबसे २ गुनी लेकर सबको एकत्र मिला लें ।
( मात्रा - ६ माशे । )
(५९१७) रास्नाद्यं चूर्णम् (२)
( ग. नि. । वाता. २० ) रास्ना शतावरी दारु कङ्कोल्लं लाङ्गली कणा । रक्तचन्दन मञ्जिष्ठाद्वद्विसैन्धवपद्मकम् ॥
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इसे घी में मिला कर उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे स्वग अस्थि स्मायु और सन्धिगत वायु शीघ्रही नष्ट हो जाती है ।
( मात्रा - - १॥ - २ माशे । ) (५९१८) रुचकादिचूर्णम् (१) ( वृ. नि. र. । ग्रहणी रो. )
यह चूर्ण श्वास, खांसी और राजयक्ष्माको रुचकाग्निमरीचानां चूर्ण तक्रेण सेवितम् । करता है ।
ग्रहण्युदर गुल्मार्थः शुन्मान्यठीहनाशनम् ॥
* पोखरमूलका तेल --१ सेर पोखरमूलको ८ सेर पानी में पकावें और २ सेर पानी रहने पर छान लें। आधा सेर तेलमें यह काथ और १० तोले पोखरमूलका कल्क मिला कर पकायें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें।
रास्ना, शतावर, देवदारु, कंकोल, लांगली ( कलियारी), पीपल, लाल चन्दन, मजीठ, वृद्धि, सेंधानमक, पद्माक, असगन्ध, गिलोय, पाठा, नागरमोथा, इलायची, शालपर्णी, सोया, अजमोद, सेठ, और कूठ; इन सबका चूर्ण समान भाग ले कर सबको एकत्र मिलावें ।
सञ्चल ( काला नमक ), चीता और काली मिर्च का चूर्ण समान भाग लेकर सबको एकत्र मिला लें ।
इसे के साथ सेवन करने से ग्रहणी दोष, उदर रोग, गुल्म, अर्श, अग्निमांद्य और प्लीहा ( तिल्ली ) का नाश होता है ।
( मात्रा - २ - ३ माशे । ) (५९१९) रुचकादि चूर्णम् (२) ( वृ. नि. र. । शूलरोगकर्म . ) चूर्ण समं रुचकमिहौषधानामुष्णाम्बुना कफसमीरणसम्भवासु ।
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