SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [रकारादि अथ रकारादिचूर्णप्रकरणम् (५९०१) रक्तचन्दनादिचूर्णम् (५९०२) रजन्यादिचूर्णम् (१) (ग. नि. । वाता. १८) - (व. से. । अश्मरी.) आरक्तकं चन्दनमुस्तशालि पिबेदजनीं सम्यक्सगुडान्तुषवारिणा । पर्यस्तथा लाङ्गलिकाऽजमोदा । तस्याशु चिररूढापि यात्यन्तं मेदशर्करा ॥ पाठाऽश्वगन्धा च शतावरी च ____ हल्दीके चूर्णको गुड़में मिला कर कांजीके कोलकं मागधि देवदारु ॥ साथ पीनेसे पुरानी और प्रवृद्ध शर्करा भी नष्ट हो एला यवानी शतपुष्पिका च जाती है। मूलं वचा सैन्धवपनकं च । (५९०३) रजन्यादिचूर्णम् (२) कुष्ठं समङ्गा सुरुदारु भव्यं ( वृ. मा.; बं. से. । श्लीपदा.) रास्नाऽरलु गरकं गुडूची ॥ श्लोकद्वये चूर्णकमेतदुक्तं रजनी गुडसंयुक्तां गोमूत्रेण पिबेन्नरः । कधिमा घृतसम्प्रयुक्तम् । वर्षात्थं श्लीपर हन्ति दद्रुकुष्ठं विशेषतः ॥ तक्रान्वितं सोष्णजलानुपानं __ हल्दीके चूर्णको गुड़में मिला कर गोमूत्रके निहन्ति सर्वाङ्गमरुद्विकारम् ॥ साथ पीनेसे १ वर्षका पुराना स्लीपद और विशेषतः लाल चन्दन, नागरमोथा, शालपर्णी, कलि- । दाद नष्ट होता है। हारी, अजमोदा, पाठा, असगन्ध, शतावर, कंकोल, ___ (५९०४) रजन्यादिचूर्णम् (३) पीपल, देवदारु, इलायची, अजवायन, सोया, ( भै. र. ; वृ. मा. । बालरो.) पीपलामूल, बच, सेंधा नमक, पद्माक, कूठ, मजीठ देवदारु, करेला, रास्ना, अरलुकी छाल, सेांठ और रजनीदारुसरलश्रेयसोवृहतीद्वयम् । गिलोय; समान भाग ले कर यथा विधि चूर्ण पृश्निपर्णीशताहा च लीढं माक्षिकसर्पिष। ॥ बनावें । ग्रहणीदीपनं हन्ति मारुताति सकामलाम् । ज्वरातिसारपाण्डुत्वं बालानां सर्वरोगजित् ॥ मात्रा-७॥ माशे । ___हल्दी, देवदारु, सरलकाष्ठ (चीरका बुरादा), इसे धीमें मिलाकर तक्रमें घोलकर सेवन कर- | हरं, छोटी कटेली, बड़ी कटेली (बनभण्टा ), नेसे सर्वाङ्गगत वात विकार नष्ट होते हैं। पृश्निपी और सोया; सबका चूर्ण १-१ भाग ले अनुपान-उष्ण जल । कर सबको एकत्र मिला लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy