SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3 भारत-भैषज्य रत्नाकरः [रकारादि लोध, नीलोत्पल, गिलोय, पद्म और सारिवा | (५८९५) रोधादिक्वाथः (३) समान भाग लेकर काथ बनावें । ( हा. सं. । स्था. ३ अ. २९) इसमें खांड मिला कर पीनेसे पित्त ज्वर नष्ट | रोध्रार्जुनः खदिरमागधिकासमङ्गा । होता है। क्वाथोऽम्लवेतसमधुघृतसम्पयुक्तः ॥ . (प्रत्येक ओषधि आधा तोला । पाकार्थ जल | गुल्मं सरक्तमपि चाथ निहन्ति चाशु । २० तोले । शेष काथ ५ तोले । खांड १। तोला।) | हृत्क्लेदनं च विनिहन्ति यकृत्सरक्तम् ॥ इसी प्रकार पित्तपापड़ेका काथ पीनेसे भी लोध, अर्जुनकी छाल, खैरसार, पीपल, मजीठ पित्त ज्वर नष्ट होता है। और अम्लवेत समान भाग ले कर काथ बनावें । इसमें घी और शहद मिलाकर पीनेसे रक्त (५८९४) रोधादिक्वाथः (२) | गुल्म, हृदक्लेद और यकृत रोग नष्ट होता है। (वृ. मा. । प्रमेहा.) (प्रत्येक ओषधि ६ माशे । पाकार्य जल रोधार्जुनोशीरकुचन्दनाना २४ तोले । शेष काथ ६ तोले । मधु २ तोले, घृत मरिष्टसेव्यामलकाभयानाम् । १ तोला ) धात्र्यर्जुनारिष्टकवत्सकानां __(५८९६) रोधादिगणः नीलोत्पलैलातिनिशार्जुनानाम् ॥ . (वा. भ. । सूत्र अ. १५) चत्वार एते विहिताः कषायाः रोधशाबरकरोध्रपलाशाजिङ्गिणी सरलकदपित्तपमेहे मधुसम्पयुक्ताः ॥ फलयुक्ताः । कुत्सिताम्बकदलीगतशोकाः सैलवालुपरिपेल(१) लोध, अर्जुनकी छाल, खस, और लाल वमोचाः॥ चन्दन; एष रोधादिको नाम मेदः कफहरो गणः । (२) नीमकी छाल, खस, आमला और हर्र; योनिदोषहरः स्तम्भी वो विषविनाशनः ॥ ITE ___ (३) आमला, अर्जुन, नीमकी छाल और लोध, सावर लोध, ढाक (पलाश), जिंगणी, इन्द्रजौ; सरलकाष्ठ (चीर), कायफल, कदम्ब, केला, अ(४) नीलोत्पल, इलायची, तिनिश ( सांदन | शोक, एलवाल, नागरमोथा और मोचरस, इन वृक्ष ) की छाल और अर्जुनकी छाल । ओषधियों के समूहको ‘रोधादि गण' कहते हैं। इनमेंसे किसी एक काथमें शहद मिला कर यह गण मेद, कफ और योनि दोषनाशक पीनेसे पित्त प्रमेह नष्ट होता है। । तथा स्तम्भक, वर्ण्य और विषनाशक है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy