________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कषायप्रकरणम् ]
- चतुर्थो भागः
सर्वाङ्गकाङ्गवाताऊश्वसनकसनहत्स्वेदशैत्यादि । (५८८६) रास्नादिक्वाथः (२०) (लघु) तन्द्राशूलं तूनीप्रतूनीगलगदनिखिलाङ्गव्यथा- (ग. नि. । आमवाता. २२; व. से. । आम
कम्पखल्लीः ।। वात; यो. त. । त. २२; वृ. मा.) विश्वाचीश्लीपदामानिलनिखिलमहामूतिकारोग रास्नैरण्डशतावरीसहचरादुस्पर्शवासामृता- .. सुप्ति जिहास्तम्भापतानं स्फुटनविमथनक्लीवता
देवाहातिविषाभयाघनशठीशुण्ठीकषायकृतः । क्षेपकौब्जम् ।
जम्! पीतः सोरुबुतैल एष विहितः सामे सशूलेऽनिले शोफाठोपापतन्त्रादितखुडहनुरुग्गृध्रसीपादशूलं |
कटयूरुत्रिकपृष्ठपार्श्वजठरक्रोडेषु वातातिजित् ॥ वायुश्लेष्मोत्थरोगानपि गिरितनयावल्लभेनो
रास्ना, अरण्डको जड़, शतावर, पियाबासा, पदिष्टः ॥
धमासा, बासा, गिलोय, देवदारु, अतीस, हरे, रास्ना, अरण्डमूल, गिलोय, बच, पियाबासा,
नागरमोथा, कचूर और सेठ समान भाग लेकर चव, चिरायता, नागरमोथा, भरंगी, अजवायन,
सबको एकत्र मिला कर अधकुटा कर लें। अनन्तमूल, अजमोद, पाठा, देवदारु, बायबिडंग, का
( यह चूर्ण २॥ तोले । पाकार्थ जल २० कड़ासिंगी सोंठ, खरैटी, मूर्वा, कुटकी, मजीठ, अतीस,
तोले । शेष क्वाथ ५ तोले ।) कचूर, हर्र, बहेड़ा, आमला, पीपल, जवाखार, लाल चन्दन, अमलतास, कुड़ेकी छाल, इन्द्रजौ,
___इस क्वाथमें अरण्डीका तेल मिला कर पीनेसे पुनर्नवा और दशमूलकी प्रत्येक वस्तु समान
शूल युक्त आमवात, तथा कटि, उरू, त्रिकस्थान, भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर अधकुटा
पृष्ठ, पार्श्व और जठरकी वातज पीड़ा शान्त कर लें।
होती है। ( यह चूर्ण ५ तोले । पाकार्थ जल ४०
(५८८७) रास्नादिक्वाथः (२१) तोले । शेष क्वाथ ५ तोले ।)
(रास्नादिद्वात्रिंशकः) इस क्वाथमें गूगल मिलाकर सेवन करनेसे ( ग. नि. । वातरोगा. १९) साग वात, एकांग वात, श्वास, खांसी, पसीना, रास्ना गुडूची देवाहमेरण्डमभया शठी। शैत्य, तन्द्रा, शूल, तूनी,प्रतूनी,गलरोग, अंगव्यथा, | बला चारवधः शुण्ठी शतपुष्पा पुनर्नया ।। कम्प, खल्ली, विश्वाची, श्लीपद, आमवात, सूतिका पञ्चमूली विषा मुण्डी सैरेयकदुरालभे । रोग, सुप्ति, जिह्वास्तम्भ, अपतानक, शरीरको हड- यवानी पौष्करं मूलं वाजिगन्धा प्रसारणी ।। फूटन और व्यथा, कुब्जता, आक्षेप, शोथ, गोक्षुरश्चाटरूषश्च हपुषा वृद्धदारुकम् । आटोप, अपतन्त्रक, अर्दित, खुड्डवात, उरुग्रह, | शतावरी समङ्गा च गुग्गुलुगिरिजं तथा ॥ हनुपह, गृध्रसो, पादशूल और अन्य वातकफज | | समभागैरिमैः सर्वैः कषायमुपकल्पयेत् । रोग नष्ट होते हैं।
' पिबेत्सर्वाङ्गगे बाते सामे सन्ध्यस्थिमज्जगे ॥
For Private And Personal Use Only