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रास्नामृतानागरवातशत्रु कटकटेरीजनितः कषायः । एरण्डतैलेन समन्वितोयं
भेत्ता भवेदामसमीरणस्य ॥
कषायप्रकरणम् ]
(५८८०) रास्नादिक्वाथः (१४) ( वृ. नि. र. । हिक्का . )
चतुर्थी भागः
रास्ना, गिलोय, सोंठ, अरण्ड मूल और दारुहल्दी समान भाग ले कर काथ बनावें ।
इसमें अरण्डीका तेल मिला कर पीने से आम - वातका नाश होता है ।
( प्रत्येक ओषधि ६ माशे । पाकार्थ जल २० तोले । शेष काथ ५ तोले । ) (५८८१) रास्नादिक्वाथ: (१५) ( वृ. नि. र. | हिक्का . )
रास्नामरदारुराजवृक्ष
त्रिकवैण्ड पुनर्नवामृतानाम् । Fari जलमामवात एषां
शमयेनागर कल्कमिश्रमाशु ॥
रास्ना, देवदारु, अमलतास, सोंठ, मिर्च, पीपल, अरण्डकी जड़, पुनर्नवा और गिलोय समान भाग ले कर काथ बनावें ।
इसमें सांठका कल्क मिला कर सेवन करने से आमवात शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
(५८८२) रास्नादिक्वाथः (१६) ( धन्व. | आमवाता. ) रास्नापुनर्नवा शुण्ठी गुडूच्येरण्डकं शृतम् । सप्तधातुगते वाते सामे सर्वाङ्गगे पिवेत् ॥
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रास्ना, पुनर्नवा, सांठ, गिलोय और अरण्डकी जड़ समान भाग ले कर काथ बनावें ।
यह काथ सप्त धातु और सर्वाङ्गगत आमवाaat ष्ट करता है ।
( प्रत्येक ओषधि ६ माशे । पाकार्थ जल २० तोले । शेष क्वाथ ५ तोले । )
(५८८३) रास्नादिक्वाथः (१७) ( वृ. मा. । वाता. ) रास्नायुक्पश्ञ्चमूलमिशिवरुण बलामेघपथ्यायवानी - शुण्ठीपाठाजमोदासहचरा हपुषाभङ्गुरावाजिगन्धाः । आभावृश्चीव सोग्राविषममृतशठी सारणी वृद्धदारु रास्नाशम्पाककषायैः शतावरी पौष्करैरण्डव्यैः ॥ एतत्सर्वं समां विधिव
क्वथितं मुष्टिमात्रं जलेन चूर्ण चाभादिमस्मिन्प्रपिवतिमनुजो गुग्गुलुं वा तथैव । आम पक्षाभिघातं हनुगतपवनं चार्दितं जानुशूलं कार्तिकफपवन
जो हन्ति सन्ध्यस्थिसंस्थाः || रास्ना, दशमूल, सौंफ, बरनेकी छाल, बला (खरैटी), नागरमोथा, हर्र, अजवायन, सोंठ, पाठा, अजमोद, पियाबासा, हपुषा, भरंगी, असगन्ध, कीकरकी छाल, पुनर्नवा, बच, अतीस, गिलोय,
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