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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० भारत-भैषज्य रत्नाकरः [यकारादि जौ और गेहूंके चूर्णको दूधमें पकाकर उसमें | तोले जीरा मिला कर पुनः पकावें और जब पानी घी, शहद और मिश्री मिला कर सेवन करनेसे | जल जाए तो घीको छान लें। क्षयरोग नष्ट होता है। इन्हीं ओषधियोंसे सिद्ध यूपमें १। तोला (५८४७) यवादिमन्थः उपरोक्त घी और ( स्वाद योग्य ) सेंधा नमक मिला कर उसके साथ शाली और साठी चावलेको (शा. ध.। खं. २ अ. ३) भात खानेसे सूतिका रोग नष्ट होता है । प्लावितैः शीतनीरेण सघृतैर्यवसक्तुभिः । नातिसान्द्रद्रमन्थस्तृष्णादाहालपित्तहा ॥ (५८४९) यवादियोगः (ग. नि. । कास १०.) जौ के सत्तूको ठण्डे पानीमें घोलकर उसमें | यवानां चूर्णमामानां क्षीरसिद्धं घृतप्लुतम् । घी मिला कर पीनेसे तृष्णा, दाह और रक्तपित्तका ज्वरदाहे सिताक्षौद्रसक्तुमत् पयसा पिवेत् ॥ नाश होता है। ___ कच्चे (अधपके) जौके चूर्णको दूधमें पकाकर सत्तू न अधिक गाढ़ा होना चाहिये और न | उसमें घी, मिश्री, शहद और सत्तू मिला कर तथा अधिक पतला। | दूधसे पतला करके पीनेसे ज्वरकी दाह शान्त (स्वाद योग्य मिश्री भी मिला लेनी चाहिये।)। होती है। (५८४८) यवादियूषः (५८५०) यवान्यादिपेया (व. से. । स्त्री.) ( वा. भ. । चि. स्था. अ. ३) यवकोलकुलित्थानां शालिमूलं तथैव च। यवानीपिप्पलोबिल्बमध्यनागरचित्रकः । क्वाथयेदप्रमत्तस्तु सुपूते सलिलाढके ॥ रास्नाजाजीपृथक्पीपलाशशठिपौष्करैः ॥ तत्पादावस्थितं क्वाथं सर्पिर्युक्तं सजीरकम् । सिद्धां स्निग्धाम्ललवणां पेयामनिलजे पिबेत् पक्वं घृताक्षमात्रेण सैन्धवेन समायुतम् ॥ कटिहत्पार्च कोष्ठार्तिश्वासहिध्माप्रणाशिनीम् ॥ एतेनैव च युषेण चाश्नीयाच्छालिषष्टिकम् । अजवायन, पीपल, बेलगिरी, सांठ, चीता, सूतिकोपद्रवं हन्ति भुक्तमात्रान संशयः॥ रास्ना, जीरा, पृष्ठपर्णी, पलाशकी छाल, कचूर जौ, बेर, कुलथी और शालिधानकी जड़ और पोखरमूलसे सिद्ध पेयामें घृत, अनारका रस ( २०-२० तोले ) लेकर सबको कूटकर ८ सेर और सेंधा नमक मिलाकर पिलाना वातज रोगोमें छने हुवे पानीमें पकावें । जब २ सेर पानी शेष रह तथा कमर, हृदय, पार्श्व और कोष्ठकी पीड़ा एवं जाय तो छान कर उसमें आधा सेर घी और ५ / श्वास और हिचकीमें हितकर है। इति यकारादिमिश्रप्रकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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