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तैलपकरणम् ]
चतुर्थो भागः
(५७९५) यष्टयादिघृतम् (४) विधि-६५ तोले धीमें उपरोक्त काथ तथा (३. मा.। आगन्तुद्रणा.)
कल्क मिला कर पकावें । जब पानी जल जाए तो सद्यःक्षतं व्रणं वैद्यः सशूलं परिषेचयेत् ।।
घीको छान लें।
___ यह घृत ऊर्ध्वजत्रुगत रोगोंको नष्ट यष्टीमधुकयुक्तेन किश्चिदुष्णेन सर्पिषा ॥
करता है। ___ मन्दोष्ण घृतमें मुलैठीका बारीक चूर्ण मिला
(५७९७) यष्टयायं घृतम् कर उससे ताजे घावको तर करनेसे घावकी पीड़ा
( ग. नि. । बालरो.; वा. भ. । उ. अ. २) शान्त होती है।
यष्टयाहपिप्पलीरोध्रपद्मकोत्पलचन्दनैः। (५७९६) यष्टयादिघृतम् (५)
तालीससारिवाभ्यां च साधितं शोषजिघृतम्।। (वृ. मा.)
कल्क-मुलैठी, पीपल, लोध, पनाक, कमल, यष्टीमधुबलारास्नादशमूलाम्बुसाधितम् ।।
सफेद चन्दन, तालीस पत्र और सारिवा ५-५ मधुरैश्च घृतं सिद्धमूर्ध्वजत्रुगदापहम् ॥
तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें। ___ काथ-मुलैठी, खरैटी, रास्ना आर दशमूलकी काथ-उपरोक्त कल्ककी ओषधियां १-१ प्रत्येक औषध १०-१० तोले ले कर सबको १३ सेर (मिलित ८ सेर ) ले कर सबको एकत्र कुट सेर पानीमें पकावें । जब ३। सेर पानी शेष रहे कर ६४ सेर पानीमें पकावें । जब १६ सेर पानी तो छान लें।
शेष रह जाए तो छान लें। कल्क-जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, विधि-४ सेर घीमें उपरोक्त कल्क और काथ काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णा, माषपणीं मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए जीवन्ती और मुलैठी समान भाग मिश्रित १६। तोले | तो घीको छान लें। लेकर सबको एकत्र पीस लें।
यह घृत बालकोंके शोषको नष्ट करता है। इति यकारादिघृतप्रकरणम्
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अथ यकारादितैलप्रकरणम् (५७९८) यवादितैलम् (१)
२ सेर तिलके तेलमें ४०० सेर (१० मन) (वै. क. द्रु. । स्क. २)
काजी और १० तोले जौ तथा २॥ तोले मजीठका
चूर्ण मिला कर पकावें । जब काञ्जी जल जाय तो यवचूर्णार्द्धकुडवं मञ्जिष्ठार्द्धपलेन तु ।
तेलको छान लें। तैलमस्थं शतगुणे काझिके साधितं जयेत् ॥ इसको मालिशसे ज्वर और प्रबल दाह तथा ज्वरं दाहं महावेगमङ्गानां च प्रहर्षनुत् ॥ । अंगोंका प्रहर्ष नष्ट होता है।
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