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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [यकारादि - - सोंठ, नागरमोथा, धायके फूल, दारुहल्दी, भाग चूर्ण ले कर सबको एकत्र मिला कर शहदमें असा अजवायन, सुगन्धबाला, पीपल, बच, कुड़ेकी । घोट कर गोलियां बनावें । इनके सेवनसे संग्रहणी और अतिसार नष्ट छाल, धनिया, बेलगिरी, पाठा, इन्द्रजौ, सेंभलका | होता है। गेांद ( मोचरस ), अतीस और हर्र; इनके समोन | ( मात्रा-१॥ माशा । ) इति यकारादिगुटिकाप्रकरणम् अथ यकारादिगुग्गुलुप्रकरणम् (५७७७) योगराजगुग्गुलुः (१) रेतोदोषाश्च ये पुंसां योनिदोषाश्च योषिताम् । ( ग. नि. । गुटिका. ४; र. र. स.। अ. २१; निहन्याचाशु तान्सर्वान्दुरानप्यसंशयम् ।। वै. म. २. * अ. १६; यो. चि. म. । अ. ७) | एष निष्परिहारस्तु पानभोजनमैथुने।। सतताभ्यासयोगेन वलीपलितनाशनः ॥ पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः।। पीपल, पीपलामूल, चव, चीता सोंठ, पाठा, पाठाविडजेन्द्रयवहिङ्गुभार्गीवचान्वितैः ॥ बायबिडंग, इन्द्रजौ, हींग, भरंगी, बच, सरसों, सर्षपातिविषाजानिजीरकै रेणुकायुतैः। अतीस, जीरा, काला जीरा, रेणुका, गजपीपल, गजकृष्णाजमोदाभ्यां कटुमूर्वासमन्वितैः ।। अजमोद, सोंठ, मिर्च, पीपल और मूर्वा १ - १ समभागान्वितैरेतैत्रिफला द्विगुणा भवेत् । भाग; त्रिफला ( समान भाग मिलित हर्र, बहेड़ा, त्रिफलासहितरेतैः समभागस्तु गुग्गुलुः॥ आमला ) २ गुना ( ४४ भाग) और शुद्ध गूगल एतच्चूर्णीकृतं सर्व मधुना च परिप्लुतम् । | ६६ भाग ले कर गूगलमें आवश्यकतानुसार शहद योगराजमिमं विद्वान्भक्षयेत्प्रातरुत्थितः ।। और थोड़ा थोड़ा उपरोक्त द्रव्योंका चूर्ण मिला कर अम॑सि वातगुल्मं च पाण्डुरोगमरोचकम् । कूटें । जब सम्पूर्ण चूर्ण अच्छी तरह मिल जाए तो नाभिशूलमुदावर्त प्रमेहान्वातशोणितान् ॥ सुरक्षित रक्खें। कुष्ठं क्षयमपस्मारं हृद्रोगं ग्रहणीगदम् ।। इसे प्रातःकाल सेवन करना चाहिये । महान्तमग्निसादं च श्वासकासभगन्दरान् ॥ इसके सेवनसे अर्श, वातज गुल्म, पाण्डु, *वै. म. र. में अरुचि, नाभि शूल, उदावर्त, प्रमेह, वातरक्त, कुष्ठ, (१) रेणुकाके स्थानमें कूठ, तथा (२) मूर्वा क्षय, अपस्मार, हृद्रोग, संग्रहणी, अग्निमांद्य, श्वास, के स्थानमें सित ( भोजपत्र, या धव ) लिखा है। खांसी, भगन्दर, शुक्र दोष और योनि दोष नष्ट और (३) त्रिफला सबके बराबर है। होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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