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( प्रत्येक ओषधि १ तोला । पाकार्थ जल ४८ तोले । शेष काथ १२ तोले । पीपलका चूर्ण १ माशा | )
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
(५७३२) यष्ट्यादिक्वाथः (२) ( यो. र. ; व. से. । नेत्र ) ष्ट गुडूचीं त्रिफलां सदावमक्ष्यामये सर्वभवे पिवेद्वा । आश्चोतनं सान्द्ररसेन दायः शस्तं सदा क्षौद्रयुतं नराणाम् ॥ मुलैठी, गिलोय, हर्र, बहेड़ा, आमला और दारूहल्दी समान भाग ले कर काथ बनावें ।
इसे पीने से सर्व दोषज नेत्र रोग नष्ट होते हैं। दारूहल्दी के स्वरस या काथको गाढ़ा करके उसमें शहद मिलाकर आंख में डालना भी हित कारी है।
( प्रत्येक ओषधि १ तोला, पाकार्थ जल ४८ तोले, शेष काथ १२ तोले । )
(५७३३) यष्ट्यादिक्वाथः (३) (ग. नि. । वातपित्त ज्वर . ) मधुयष्टिर्निशायुग्मं पटोलं व्याधिघातकः । मुस्तनिम्बामृताक्वाथ वातपित्तज्वरापहः ॥
मुलैठी, हल्दी, दारूहल्दी, पटोल, अमलतासका गूदा, नागरमोथा, नीमकी छाल और गिलोय समान भाग लेकर काथ बनावें ।
यह का वातपित्त - ज्वरको नष्ट करता है । ( प्रत्येक ओषधि ९ माशे; पाकार्थ जल ४८ तो शेष काथ १२ तोले । )
[यकारादि
(५७३४) यष्ट्यादिक्वाथः (४) ( वृ. नि. र. । त्रिदोषातिसार. ) यष्टीमधु सितालोधं मधूकं नीलमुत्पलम् । अजाक्षीरेण क्वथितं रक्तातीसारशान्तये ॥
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मुलैठी, लोध, मिसरी, महुवे के फूल, और नीलकमल समान भाग ले कर बकरीके दूधमें कावें ।
इसके सेवनसे रक्तातिसार नष्ट होता है ।
( प्रत्येक ओषधि आधा तोला; बकरीका दूध २० तोले; जल १ सेर; सबको एकत्र मिलाकर पकावें और दूध मात्र शेष रहने पर छान लें। ) (५७३५) यष्टादिक्वाथः (५)
( वृ. नि. र. । विषमज्वर . ) यष्टी दुरालभावासा त्रिफलावालकामृता । मुस्तक्वाथः सितायुक्तो विषमज्वरनाशनः ॥
मुलैठी, धमासा, बासा, हर्र, बहेड़ा, आमला सुगन्धवाला, गिलोय और नागरमोथा समान भाग लेकर काथ बनावें ।
इसमें मिसरी मिलाकर पीनेसे विषम ज्वर नष्ट होता है ।
( प्रत्येक ओषधि आधा तोला पाकार्थ जल ३६ तोले । शेष काथ ९ तोले । )
(५७३६) यष्ट्यादिक्वाथः (६)
( वृ. नि. २. | सन्निपात ज्वर . ) यष्टी पटोलकटुकाघननिम्बसुराधावन्यः । अपहरन्ति मोहपित्तं ज्वरमुग्रं सन्निपातोत्थम् ॥
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