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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] : चतुर्थों भागः २६९ इसके सेवन कालमें अम्ल और क्षार पदार्थ, इसको सेवन करने वालेके केश जीवन पर्यन्त क्रोध तथा मैथुनका त्याग करना आवश्यक है । सफेद नहीं होते। शीत स्थानमें रहना चाहिये। .. ___ इसे निरन्तर ३ मास तक सेवन करनेसे . इसके सेवनसे बल और वीर्यकी अत्यधिक सफेद बाल काले और कोमल हो जाते हैं; शरीर वृद्धि होती है तथा जो इसे सेवन करता है उसे दृढ़ और मनोहर हो जाता है; शरीरका रङ्ग अत्यन्त गौर हो जाता है तथा उत्साह अत्यधिक कोई रोग नहीं होता। बढ़ जाता है। यह कल्प राजाओंको सेवन कराने योग्य है। इति मकारादिकल्पप्रकरणम् अथ मकारादिमिश्रप्रकरणम् (५६८४) मञ्जिष्ठाद्योऽगदः है; केवल सुवर्ण, रजत यो ताम्रके कड़ेसे उसके (व. से. । विषरोगा. ) मणिबन्ध (पहुंचे) को दाग देना चाहिये । मअिष्ठेला निशा द्राक्षा मांसी यष्टी हरेणुका ।। (५६८६) मण्डयोगः क्षौद्रं चेति विषघ्नोऽयमगदः काशिकोऽब्रवीत् ।। मजीठ, इलायची, हल्दी, मुनक्का, जटामांसी, (ग. नि. । अजीर्णा.) मुलैठी और रेणुका समान भाग ले कर चूर्ण | अन्नमण्डं पिबेदुष्णं हिङ्गुसौवर्चलान्वितम् । बनावें । इसे शहदमें मिला कर खिलानेसे विष विषमोऽपि समस्तेन मन्दो दीप्येत पावकः ॥ नष्ट होता है। शुद्धोधनो बस्तिविशोधनश्च (५६८५) मणिबन्धदहनम् प्राणप्रदः शोणितवर्धनश्च । (वै. म. र. । पटल १०) किमौषधगणैः कृतैः सकलमन्त्रवादैश्च किं ज्वरापहारी कफपित्तहन्ता चिरेण वत जीवितुं यदि महाभिलाषोऽस्ति वः वायुं जयेदष्टगुणो हि मण्डः ॥ सुवर्णवलयेन वा रजतकेन ताम्रण वा सुतण्डुलानां प्रसृतीद्वयं च दहेत मणिबन्धने सपदि कामलारोगिणः॥ तदर्धमुद्गः कुडवं च तक्रम् । कोमला रोगीके लिये औषधांका प्रयोग करना कुस्तुम्बरी सैन्धवहिङ्गु तैलमेव्यर्थ है, मन्त्रादि की भी कोई आवश्यकता नहीं भिश्च सर्वेः क्रियते च मण्डः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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