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रसप्रकरणम् ]
शृङ्गवेररसेनानुं रविवारं विमर्द्दयेत् । गुआमात्रां वटीं कृत्वा सितया सह भक्षयेत् मृत्युञ्जयरसो नाम नवज्वरहरः परः ॥
शुद्ध पारद, हिंगुल और जमालगोटा समान भाग लेकर तीनोंको २-२ दिन विधारा और गूलर पत्तों के रस में तथा १ दिन अदरक के रसमें खरल करके १-१ रत्तीकी गोलियां बनावें । इन्हें मिश्री के साथ सेवन करने से विषम ज्वर नष्ट होता है।
चतुर्थी भागः
(५६५७) मृत्युञ्जयरसः (५)
( र. र. स. । अ. १९; २. रा. सु. । ज्वर. ) द्विक्षारं त्र्यूषणं पञ्चलवणं शतपुष्पिकाम् । समभागमिदं सर्वं पटचूर्ण समाचरेत् ॥ तत्सम रसगन्धौ च कृत्वा कज्जलिकां शुभाम् । सर्वमेकत्र सम्मेल्य मर्दयेद्दिवसत्रयम् ॥ अयं मृत्युञ्जय नाम्ना रसः शीघ्रफलमदः । कथितो मयार्येण सन्निपातहरः परः ॥ सन्निपाते प्रयोक्तव्यो रक्तिकापञ्चमात्रकः । चित्रका सिन्धुत्थदुभिर्वा समन्वितः ॥ पीततोयं त्रिदोषार्त निर्वाते वासयेत्ततः । पथ्यं दध्योदनं देयं याचमानाय नान्यथा ॥ गुणो न जायते यस्य तस्य देयो रसः पुनः । हन्याद्वातगदं तथा कफगदं मन्दानत्वं ज्वरम्।। शूलं सर्वमहामयाञ्जठरजां पीडां यत्पाण्डुताम् शोफं गुल्मरुजं तथा ग्रहणिकां प्लीहामयं
।
विग्रहम ||
वाति गुल्मकृतां सकासमभितः श्वासं च
fearfu | आदौ सर्वोदराणां च देयमुक्तं विरेचनम् ॥
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गोमूत्रैर्वाऽथ गोक्षीरैर्योज्यमेरण्डतैलकम् । कर्षमात्र प्रयत्नेन शुद्धे देयो रसः पुनः ॥
सज्जीखार, जवाखार, सोंठ, मिर्च, पीपल, पांचों लवण (सेंधा, काला नमक, सामुद्र लवण, काच लवण, बिड लवण ) और सोयेका कपड़छन बारीक चूर्ण १-१ भाग तथा २-२ भाग पारद और गन्धककी कज्जली लेकर सबको एकत्र मिलाकर ३ दिन तक खरल करके सुरक्षित रक्खें ।
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यह रस सन्निपात ज्वरमें शीघ्र फल प्रदर्शित करता है ।
इसमें से ५ रत्ती रस चीता, अदरक, सेंधा, सोंठ, मिर्च और पीपल चूर्णके साथ सन्निपात ज्वर वाले रोगीको खिला कर निर्वात स्थानमें खुला दें और भूख लगने परे केवल दूध भात खिलावें और कोई पदार्थ खानेको न दें । यदि एक मात्रामें लाभ प्रतीत न हो तो ( उचित समय तक प्रतीक्षा करने के पश्चात् ) पुनः दूसरी मात्रा दें ।
सन्निपातके अतिरिक्त यह रस वातज और कफज रोग, अग्निमांद्य, शूल, उदर पीड़ा, यकृत, पाण्डु, शोथ, गुल्म, संग्रहणी तिल्ली, मलावरोध, गुल्मरोग - जनित वमन, कास, श्वास और हिचकीको भी नष्ट करता है ।
यदि इसे उदर रोगोंमें देना हो तो प्रथम रोगीको गोमूत्र या गोदुग्धमें अरण्डीका तेल मिलाकर पिलायें और उससे विरेचन हो जानेके पश्चात् १। तोला मात्रानुसार यह रस खिलावें । :
( मात्राका निर्णय रोगीका बलाबल देखकर करना चाहिये । )
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